दिल्लीः मोदी सरकार संसद की स्थायी समितियों का कार्यकाल बढ़ाने की तैयारी कर रही है। फिलहाल इन समितियों का कार्यकाल केवल एक वर्ष का होता है। सरकार का मानना है कि इसे दो वर्ष तक बढ़ाने से समितियों के कामकाज में स्थिरता आएगी।
क्यों जरूरी है बदलाव
एक वर्ष में समितियों का काम अधूरा रह जाता है। नए सदस्यों के आने से नीतिगत समीक्षा बार-बार बाधित होती है। कार्यकाल बढ़ने से सदस्य लंबे समय तक जुड़े रहेंगे और गहराई से अध्ययन कर पाएंगे।
विधायी समीक्षा होगी मजबूत
लंबे कार्यकाल से समितियों को विधेयकों पर विस्तार से चर्चा करने का अवसर मिलेगा। इससे नीतिगत सुझाव अधिक सटीक और ठोस होंगे। अधूरी रिपोर्टें दोहराने की बजाय पूरी की जा सकेंगी।
शशि थरूर जैसे नेताओं को फायदा
यह बदलाव उन सांसदों के लिए अहम है जो समितियों में अध्यक्ष हैं। खासकर शशि थरूर को इसका सीधा लाभ मिल सकता है। वे विदेश मामलों की समिति का नेतृत्व कर रहे हैं और दो वर्ष का कार्यकाल उन्हें अधिक स्थिरता देगा।
विपक्ष की आशंकाएँ
कुछ नेताओं का मानना है कि लंबे कार्यकाल से जवाबदेही कम हो सकती है। राजनीतिक समीकरण बदलते रहते हैं, ऐसे में दो साल का कार्यकाल कुछ दलों को अस्थायी लाभ भी दिला सकता है।
जनता के लिए क्या मायने
आम जनता के जीवन में इसका असर अप्रत्यक्ष होगा। लेकिन लंबी अवधि में समितियों की गुणवत्ता पूर्ण रिपोर्टें बेहतर कानून बनाने और योजनाओं के सुधार में मदद करेंगी।