नवअंश इंडिया निधि घोटाला: अलवर में करोड़ों की ठगी की पूरी कहानी

अलवर की नवअंश इंडिया निधि लिमिटेड ने 24% ब्याज का लालच देकर हजारों लोगों की गाढ़ी कमाई डुबाई। पढ़ें पूरी रिपोर्ट और जानें पोंजी स्कीम का सच।

क्या है नवअंश इंडिया निधि घोटाला?

क्या आप जानते हैं कि राजस्थान के अलवर में नवअंश इंडिया निधि घोटाला ने लोगों की मेहनत की कमाई कैसे डुबाई? यह कहानी एक फर्जी फाइनेंस कंपनी की है, जिसे मामा-भांजे की जोड़ी चला रही थी। इस कंपनी ने गांव-गांव जाकर FD और RD में 24% सालाना ब्याज का लालच देकर लोगों को फंसाया और जब लोग अपने पैसों की उम्मीद लेकर पहुंचे, तो करोड़ों रुपये लेकर फरार हो गए।

शुरुआत में यह कंपनी बिल्कुल भरोसेमंद लगती थी। पासबुक, रसीदें, बॉन्ड और लोन जैसी स्कीमें इतनी असली दिखती थीं कि किसी को शक नहीं हुआ। पहले साल ब्याज भी सही समय पर दिया गया, जिससे निवेशकों का भरोसा और बढ़ गया। कंपाउंड इंटरेस्ट की आदत ने लोगों को और निवेश करने के लिए मजबूर कर दिया।


स्कीम का तरीका और गांवों में फैलाव

2010 में खैरथल बस स्टैंड के पास छोटा सा ऑफिस खोला गया। कंपनी ने धीरे-धीरे गांववालों को एजेंट बनाकर टारगेट दिया। मल्टी-लेवल मार्केटिंग (MLM) की तरह कहा गया, “आप पांच लोग जोड़ो, वे पांच और जोड़ें।”

इस चक्र में खैरथल, मुंडावर और तिजारा तक हजारों लोग फंस गए। पेंशनधारी, किसान, मजदूर और दिव्यांग महिलाएं—सबने FD-RD में पैसा जमा किया। गांव की सिलाई मशीन से लेकर बुजुर्गों की पेंशन तक, सब नवअंश इंडिया निधि लिमिटेड के नाम हो गए। शुरुआती दिनों में ब्याज सही समय पर चुकाया गया, जिससे लोगों को और भरोसा हो गया।


भरोसे का टूटना

लेकिन दो महीने के भीतर ही सब खत्म हो गया। ऑफिस बंद हो गया, कॉल्स गायब हो गईं और लोग समझ गए कि जिन सपनों में वे जी रहे थे, वे असल में दुःस्वप्न थे। जब पैसे मांगने गए, तो कहा गया, “वो तो नरेश के पास हैं।” नरेश पहले ही गायब हो चुका था। मामा दाताराम भी दिनेश नामक एजेंट की मौत के बाद फरार हो गया।

11 सितंबर को ट्रेन के नीचे कटकर मर गया दिनेश। परिजनों ने कहा कि वह दबाव में था। गांव में गुस्सा फूट पड़ा। पंचायत बुलाई गई और मामा दाताराम को भरोसा दिलाया गया कि पैसों की वापसी होगी, लेकिन चार दिन बाद भी कोई पैसा नहीं आया और मामा अपने परिवार के साथ फरार हो गया।

 


गांव में हाहाकार

23 सितंबर की रात को पता चला कि दाताराम अपने घर से भैंसें लोड करके भाग रहा है। लोग भड़क गए, घर में तोड़फोड़ की और बाइकों को आग लगा दी। पुलिस जब पहुंची, तो भीड़ के गुस्से के सामने फिसड्डी साबित हुई। अंततः अतिरिक्त फोर्स बुलाकर हालात संभाले गए, लेकिन तब तक लोगों की उम्मीदें खत्म हो चुकी थीं।

सीमा नाम की दिव्यांग महिला ने बेटियों की शादी के लिए दो लाख रुपए जमा किए। प्रेमवती ने पूरे परिवार के नौ लाख, शंभूदयाल ने पेंशन से हर महीने दस हजार रुपये, और हुक्म कौर जैसी कई लोगों ने अपनी मेहनत की कमाई इसी कंपनी में लगा दी। अब FD की रसीदें और फाइलें सिर्फ कचरा बन चुकी हैं।


सवाल और न्याय की उम्मीद

यह मामला कई सवाल खड़ा करता है। जब RBI और SEBI जैसी संस्थाएं मौजूद हैं, जब बैंकिंग और वित्तीय गतिविधियों पर सख्त कानून हैं, तो ऐसे फर्जी ‘निधि लिमिटेड’ के खिलाफ कदम क्यों नहीं उठाए गए? यह पोंजी स्कीम सरकारी नजरों के सामने कैसे चलती रही? क्या 25 करोड़ रुपए बिना ऑडिट के खप गए? और जब लोगों की जान खतरे में आई, तब भी पुलिस क्यों सिर्फ FIR और शांति भंग तक सीमित रही?

अब सवाल यह है कि हजारों निवेशकों का क्या होगा? क्या उन्हें न्याय मिलेगा? क्या सरकार कोई रिफंड स्कीम लाएगी या यह मामला भी पोंजी स्कीम के आंकड़ों में दर्ज होकर खत्म हो जाएगा? मामा-भांजे ने ‘नवअंश’ के नाम पर लोगों की आशाओं को निगल लिया। अगर सिस्टम, प्रशासन और कानून समय रहते नहीं जागे, तो भविष्य और भी खतरनाक होगा।


चेतावनी और सीख

यह घटना हर गांव, हर गली में चेतावनी है। भरोसा सबसे कीमती चीज है, लेकिन जब यह टूटता है, तो सिर्फ पैसा नहीं, बल्कि लोगों का आत्मविश्वास और भविष्य भी डूब जाता है। अब सवाल यह है कि आप कब तक आंखें मूंदकर भरोसा करते रहेंगे?

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