करवाचौथ: पर्व और परंपरा
मांगरोल: गुरुवार को मांगरोल कस्बे और आसपास के क्षेत्रों में करवा चौथ का पर्व श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया। यह पर्व सुहागिन महिलाओं द्वारा पति की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और परिवार की खुशहाली के लिए मनाया जाता है।
सुहागिन महिलाओं ने सुबह से निर्जला व्रत रखा और दिनभर पानी नहीं पीकर व्रत की कठिनाइयों का पालन किया। महिलाओं ने शादी के जोड़े, नई साड़ी और लहंगा पहनकर खुद को दुल्हन की तरह सजाया, जिससे पर्व का उत्साह और भी बढ़ गया।
शाम का पूजन और चंद्र दर्शन
करवा चौथ व्रत की सबसे महत्वपूर्ण परंपरा है शाम को चंद्रमा के दर्शन करना और पूजा कर व्रत खोलना।
सुहागिन महिलाएं पूजा स्थल पर सजावट और श्रृंगार के साथ बैठीं। इस दौरान महिलाएं छलनी के माध्यम से चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देती हैं। इसके बाद पति के हाथ से पानी पीकर अपना व्रत खोलती हैं, जो इस पर्व का मुख्य धार्मिक अनुष्ठान है।
सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
करवा चौथ केवल एक धार्मिक व्रत नहीं है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी रखता है। महिलाओं के लिए यह पर्व सौंदर्य, श्रृंगार और परिवार के प्रति प्रेम को प्रकट करने का अवसर होता है।
इस अवसर पर महिलाएं सास-बहू, दोस्त और रिश्तेदारों के साथ मिलकर पूजा करती हैं और उत्सव को पारंपरिक गीतों और कथाओं के माध्यम से और भी रंगीन बनाती हैं।
बच्चों और युवाओं में भी उत्साह
मांगरोल में करवा चौथ का उत्सव सिर्फ महिलाओं तक सीमित नहीं रहा, बल्कि बच्चों और युवाओं ने भी इस पर्व में सक्रिय भाग लिया। उन्होंने पारंपरिक गीतों और भजन-कीर्तन के माध्यम से माहौल को जीवंत बनाया।
करवा चौथ का पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि परिवारिक और सामाजिक बंधनों को मजबूत करने वाला उत्सव भी है। मांगरोल कस्बे और आसपास के गांवों में महिलाओं की श्रद्धा और उत्साह इस पर्व को और भी जीवंत बनाता है।
इस पर्व के माध्यम से महिलाएं पति की लंबी आयु, खुशहाली और परिवार की समृद्धि की कामना करती हैं, और इसे परंपराओं के अनुसार पालन कर समाज में अपनी सांस्कृतिक पहचान बनाए रखती हैं।
संवाददाता जय प्रकाश शर्मा
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