आज कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा के दिन गुजराती नववर्ष 2025 (विक्रम संवत 2082) की शुरुआत हुई। इसे गोवर्धन पूजा या अन्नकूट के दिन भी मनाया जाता है। दिवाली के बाद यह दिन गुजरात में विशेष महत्व रखता है और इसे लोग धूमधाम से मनाते हैं। गुजराती नववर्ष को बेस्टु वरस या वर्ष प्रतिपदा के नाम से भी जाना जाता है।
चोपड़ा पूजन का महत्व
गुजराती नववर्ष को चोपड़ा पूजन के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन व्यापारी अपने पुराने खातों को बंद करके नए खाता बुक की पूजा करते हैं। इसे धन की देवी मां लक्ष्मी के सम्मुख रखकर किया जाता है। यह पूजन गुजरातियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि उनका मानना है कि इससे पूरे वर्ष माता लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है और उनका कारोबार फल-फूलता है।
शुभ चिन्ह और मंगल प्रतीक
चोपड़ा पूजन के दौरान लोग अपने बही खाता पर शुभ चिन्ह या मंगल प्रतीक बनाते हैं। इसका उद्देश्य पूरे साल वित्तीय लाभ और कारोबार में वृद्धि सुनिश्चित करना होता है। इस साल गुजराती नववर्ष 22 अक्टूबर, बुधवार को पड़ रहा है और यह दिन भगवान गणेश को समर्पित है, जो शुभ और लाभ के देवता माने जाते हैं।
गुजराती नववर्ष से जुड़ी लोक परंपराएं
गुजरात में गुजराती नववर्ष का पहला दिन बेहद खास होता है। लोग नए कपड़े पहनकर अपने घर और कार्यस्थल पर पूजा करते हैं और अपने परिवार तथा दोस्तों को शुभकामनाएं देते हैं। घरों को मंगल प्रतीकों से सजाया जाता है और विभिन्न पारंपरिक पकवान बनते हैं। इस दिन खुशियों और समृद्धि की कामना के लिए लोग विशेष रूप से सजावट और उत्सव मनाते हैं।
गोवर्धन पूजा और अन्नकूट
गोवर्धन पूजा या अन्नकूट का आयोजन भी इसी दिन होता है। घरों और मंदिरों में अन्नकूट (खाद्य सामग्री का ढेर) लगाया जाता है और भगवान को अर्पित किया जाता है। इसे विशेष रूप से किसान और व्यापारी वर्ग मनाते हैं। अन्नकूट पूजा से समृद्धि, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
गुजराती नववर्ष केवल एक पारंपरिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह समाज और संस्कृति के महत्व को भी दर्शाता है। यह दिन नई शुरुआत, खुशियों और सामाजिक मेलजोल का प्रतीक माना जाता है। व्यापारी वर्ग के लिए यह दिन नए कारोबारी वर्ष की शुरुआत का शुभ अवसर है, जबकि आम लोग इसे परिवार और दोस्तों के साथ खुशियां बांटने का दिन मानते हैं।
गुजराती नववर्ष 2025 का प्रारंभ आज गोवर्धन पूजा और चोपड़ा पूजन के साथ हुआ। यह दिन गुजरातियों के लिए धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। दिवाली के बाद इस दिन का उत्सव परिवार, दोस्त और समाज के बीच सुख-समृद्धि और खुशियों का संदेश लेकर आता है।