सनातन परंपरा में दिवाली के अगले दिन कार्तिक मास की शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा का पर्व बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस वर्ष तिथि वृद्धि के कारण यह पर्व एक दिन बाद मनाया जा रहा है। माना जाता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं गोवर्धन पर्वत की पूजा कर प्रकृति और गौ-सेवा का महत्व बताया था।
गोवर्धन महाराज कौन हैं?
हिंदू मान्यता के अनुसार, गोवर्धन महाराज कोई साधारण पर्वत नहीं हैं, बल्कि भगवान विष्णु के प्रतीक माने जाते हैं। उनकी पूजा का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि वे भगवान श्रीकृष्ण के बाल्यकाल से जुड़े हैं। श्रीकृष्ण ने इंद्र के अभिमान को तोड़ने के लिए अपने नन्हे हाथ से गोवर्धन पर्वत को उठाया था और ब्रजवासियों को भारी वर्षा से बचाया था। इसी कारण गोवर्धन महाराज को “भक्ति, संरक्षण और प्रकृति के रक्षक” के रूप में पूजा जाता है।
गोवर्धन महाराज कैसे पहुंचे ब्रजमंडल?
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार पुलस्त्य ऋषि तीर्थयात्रा पर निकले और उन्होंने गोवर्धन पर्वत की सुंदरता देखी। उस पर्वत की दिव्यता से प्रभावित होकर वे उसे अपने साथ ले जाना चाहते थे। उन्होंने उसके पिता द्रोणांचल पर्वत से इसकी अनुमति मांगी। द्रोणांचल दुखी हुए, लेकिन गोवर्धन महाराज ने उन्हें आश्वस्त किया और पुलस्त्य ऋषि के साथ जाने की स्वीकृति दे दी।
गोवर्धन महाराज की शर्त और दिव्य घटना
गोवर्धन महाराज ने पुलस्त्य ऋषि से एक शर्त रखी थी कि यात्रा के दौरान यदि वे कहीं उन्हें नीचे रखेंगे, तो वे वहीं स्थायी रूप से विराजमान हो जाएंगे। ऋषि ने यह शर्त मान ली और उन्हें अपनी हथेली पर रखकर यात्रा शुरू की। जब वे ब्रजभूमि पहुंचे, तो गोवर्धन को ध्यान आया कि यही वह पवित्र भूमि है जहां भगवान श्रीकृष्ण अवतार लेंगे। इस विचार से वे भावविभोर हो गए और उन्होंने अपना भार अत्यधिक बढ़ा लिया।
ब्रजभूमि में स्थायी रूप से विराजे गोवर्धन महाराज
पुलस्त्य ऋषि बढ़ते भार से थक गए और विश्राम के लिए उन्होंने गोवर्धन पर्वत को ब्रजभूमि में रख दिया। जैसे ही वे पर्वत को नीचे रखा, गोवर्धन महाराज वहीं स्थायी रूप से स्थापित हो गए। जब ऋषि ने उन्हें दोबारा उठाने की कोशिश की, तो वे असफल रहे। तभी से यह पर्वत ब्रजभूमि का अभिन्न हिस्सा बन गया और “गोवर्धन महाराज” कहलाने लगे।
गोवर्धन पूजा का धार्मिक महत्व
गोवर्धन पूजा का अर्थ केवल पर्वत की आराधना नहीं, बल्कि प्रकृति, गौ-सेवा और जीवन के संतुलन की आराधना है। श्रीकृष्ण ने इस दिन इंद्र देव की जगह गोवर्धन की पूजा करके यह संदेश दिया था कि हमें प्रकृति और जीवों के प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए। इस पूजा से जीवन में समृद्धि, सुख और शांति की प्राप्ति होती है।
कलयुग में गोवर्धन महाराज की पूजा का महत्व
धार्मिक ग्रंथों में वर्णन है कि कलयुग में गोवर्धन महाराज की पूजा से पापों का नाश होता है और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो भक्त कार्तिक प्रतिपदा के दिन श्रद्धा से गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं, उनके सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सकारात्मकता का संचार होता है।
गोवर्धन पूजा से जुड़ी परंपराएं
इस दिन भक्त गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाते हैं और उस पर फूल, अनाज और मिठाई अर्पित करते हैं। इसे “अन्नकूट” भी कहा जाता है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण को 56 प्रकार के व्यंजन (छप्पन भोग) अर्पित किए जाते हैं। पूरे ब्रजमंडल में भक्ति संगीत, भजन और परिक्रमा का आयोजन होता है।
गोवर्धन पूजा का संदेश
गोवर्धन महाराज की कथा हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति केवल पूजा में नहीं, बल्कि प्रकृति और समाज के प्रति समर्पण में है। यह पर्व हमें अपने कर्म, श्रद्धा और दया के माध्यम से भगवान के प्रति आस्था प्रकट करने की प्रेरणा देता है।