हिंदू धर्म में दशहरा, जिसे विजयादशमी कहा जाता है, का अत्यंत विशेष महत्व है। इस दिन भगवान राम ने रावण का वध करके सत्य और धर्म की विजय का संदेश दिया था। दशहरे के दिन जहां रावण दहन की परंपरा है, वहीं शमी के पेड़ की पूजा भी उतनी ही महत्वपूर्ण मानी जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शमी का वृक्ष समृद्धि, विजय और शक्ति का प्रतीक है। आइए जानते हैं कि दशहरे पर शमी पूजन क्यों किया जाता है और इसकी विधि एवं महत्व क्या है।
शमी वृक्ष का महत्व
हिंदू धर्म ग्रंथों में शमी वृक्ष को अत्यंत पवित्र माना गया है। मान्यता है कि शमी के पेड़ की पूजा करने से न केवल पाप नष्ट होते हैं बल्कि धन, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि भी प्राप्त होती है। महाभारत काल में पांडवों ने अपने वनवास के दौरान अपने शस्त्र शमी के पेड़ में छिपाए थे। जब वे अज्ञातवास समाप्त कर युद्ध के लिए तैयार हुए तो उसी शमी वृक्ष से अपने अस्त्र-शस्त्र प्राप्त किए। इसलिए इसे विजय और सफलता का प्रतीक माना जाता है।
शमी पूजा की विधि
दशहरे के दिन प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
शमी वृक्ष के नीचे या उसके पास पूजा की थाली सजाएँ।
वृक्ष को जल, दूध और गंगाजल से स्नान कराएँ।
रोली, चावल, पुष्प और धूप-दीप अर्पित करें।
शमी के पत्तों को परिवार के सदस्यों के बीच बांटें और इसे ‘सोना’ मानकर एक-दूसरे को शुभकामनाएँ दें।
अंत में भगवान राम और पांडवों का स्मरण करें और विजय की कामना करें।
धार्मिक मान्यताएँ और लाभ
शमी वृक्ष की पूजा से शनि दोष और ग्रह पीड़ा का निवारण होता है।
यह पूजा आर्थिक समृद्धि और व्यापार में उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती है।
शमी वृक्ष को विजय का प्रतीक माना जाता है, इसलिए युद्ध अथवा किसी बड़े कार्य से पहले इसकी आराधना करने की परंपरा रही है।
घर में शमी का पौधा लगाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मकता बढ़ती है।
दशहरा केवल रावण दहन का पर्व नहीं है, बल्कि यह धर्म, सत्य और विजय का प्रतीक है। शमी के पेड़ का पूजन इस पर्व को और भी आध्यात्मिक बनाता है। 2025 के दशहरे पर शमी पूजन करने से न सिर्फ जीवन की बाधाएँ दूर होंगी बल्कि परिवार में सुख-शांति और समृद्धि भी बढ़ेगी।