दिल्ली हाईकोर्ट ने साफ किया है कि SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों का इस्तेमाल किसी बैंक को उसके वैध गिरवी अधिकारों का प्रयोग करने से रोकने के लिए नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि अगर कोई बैंक किसी व्यक्ति की संपत्ति को गिरवी रखकर कानूनी प्रक्रिया के तहत कार्यवाही करता है, तो इसे SC/ST कानून के दायरे में नहीं लाया जा सकता।
एक्सिस बैंक पर कार्यवाही पर रोक
न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने एक्सिस बैंक, उसके एमडी और सीईओ के खिलाफ राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग द्वारा शुरू की गई कार्यवाही पर अंतरिम रोक लगा दी। कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया, यह मामला SC/ST अधिनियम की धारा 3(1)(एफ) और 3(1)(जी) के अंतर्गत नहीं आता।
कानून की धाराएं क्या कहती हैं
धारा 3(1)(एफ) में किसी SC/ST व्यक्ति की भूमि पर गलत तरीके से कब्जा करने या खेती करने पर सजा का प्रावधान है,
जबकि धारा 3(1)(जी) में किसी SC/ST व्यक्ति को उसकी जमीन या संपत्ति से बेदखल करने पर दंड का प्रावधान है।
हालांकि, कोर्ट ने कहा कि बैंक का कार्य वैध गिरवी अधिकार के अंतर्गत आता है, इसलिए इन धाराओं का प्रयोग इस पर नहीं हो सकता।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 2013 में शुरू हुआ था, जब एक्सिस बैंक ने सनदेव अप्लायंसेज लिमिटेड को 16.69 करोड़ रुपये का ऋण दिया था।
इसके लिए महाराष्ट्र के वसई स्थित एक भूखंड को गिरवी रखा गया था।
उधारकर्ता द्वारा चूक करने के बाद, बैंक ने उस संपत्ति को कानूनी अधिकारों के तहत अपने कब्जे में लेने की प्रक्रिया शुरू की।
इसी बीच, विवाद में शामिल एक व्यक्ति ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग में शिकायत दर्ज कराई।
कोर्ट ने क्या कहा
दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि,
“प्रथम दृष्टया, याचिकाकर्ता के गिरवी अधिकारों के प्रयोग को रोकने के लिए SC/ST अधिनियम की धाराओं का उपयोग नहीं किया जा सकता।”
कोर्ट ने माना कि आयोग द्वारा शुरू की गई कार्यवाही उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
इसलिए, कोर्ट ने आयोग की कार्रवाई पर रोक लगाते हुए मामले की अगली सुनवाई तक यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया।
कानूनी विशेषज्ञों की राय
कानूनी जानकारों का कहना है कि यह फैसला बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के लिए महत्वपूर्ण मिसाल बनेगा।
अब बैंक, यदि वैध तरीके से गिरवी रखी संपत्ति पर कार्रवाई करते हैं, तो उनके खिलाफ SC/ST कानून का दुरुपयोग नहीं किया जा सकेगा।
दिल्ली हाईकोर्ट का यह आदेश न केवल बैंकों के अधिकारों को मजबूती देता है, बल्कि कानून के दुरुपयोग पर रोक लगाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
अब यह मामला आगे की सुनवाई में तय करेगा कि भविष्य में ऐसे मामलों में कानूनी सीमाएं क्या होंगी।