बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में कांग्रेस ने 61 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। इनमें 56 पुरानी सीटें और 5 नई सीटें शामिल हैं। पार्टी ने पिछली हार को ध्यान में रखते हुए स्ट्राइक रेट सुधारने की कोशिश की है, लेकिन टिकट बंटवारे में हुई देरी और विवाद ने उसके मिशन को कमजोर कर दिया है।
कांग्रेस के टिकट बंटवारे में विवाद और असंतोष
कांग्रेस ने सीटों के चयन में कई स्तरों पर बदलाव किए हैं। दरभंगा और सुपौल सीटों पर उम्मीदवारों के नाम अंतिम समय में बदले गए। दरभंगा की जाले सीट पर पहले नौशाद को टिकट दिया गया था, लेकिन नामांकन के ठीक पहले आरजेडी नेता ऋषि मिश्रा को टिकट दे दिया गया। यही कहानी सुपौल में भी देखने को मिली, जहां दो दिन पहले अनुपम को टिकट देने के बाद अंतिम दिन मिन्नत रहमानी को उम्मीदवार बना दिया गया। इन फैसलों से पार्टी कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं में भारी नाराजगी देखी जा रही है।
राहुल गांधी की यात्रा के बाद भी संगठन में संवादहीनता
राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं में ऊर्जा तो आई, लेकिन संगठनात्मक स्तर पर संवाद की कमी अब भी दिख रही है। पार्टी नेताओं और प्रदेश इकाई के बीच तालमेल की कमी स्पष्ट है। कई वरिष्ठ नेताओं और विधायकों के टिकट काटे जाने से अंदरूनी कलह खुलकर सामने आ गई है। सूत्रों के अनुसार, कुछ नेताओं को केवल इसलिए नजरअंदाज किया गया क्योंकि उनका तालमेल प्रभारी से नहीं बैठ पाया।
सामाजिक समीकरण का नया संतुलन
कांग्रेस ने इस बार टिकट वितरण में सामाजिक संतुलन साधने की कोशिश की है। सामान्य वर्ग से 20, पिछड़ी जातियों से 20, मुस्लिम समुदाय से 10, अनुसूचित जाति से 10 और अनुसूचित जनजाति से 1 उम्मीदवार को टिकट दिया गया है। पार्टी ने पिछली बार के मुकाबले पिछड़ी जातियों को अधिक प्रतिनिधित्व दिया है। हालांकि, कुछ सीटों पर कोटा पूरा करने के चक्कर में ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दे दिया गया जो उस क्षेत्र के मूल नेता नहीं हैं, जिससे ग्राउंड लेवल पर असंतोष बढ़ गया है।
नई सीटों का गणित और गठबंधन की चुनौती
कांग्रेस इस बार चार नई सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जिनमें कुम्हरार, बरारी और बिहारशरीफ जैसी सीटें शामिल हैं। ये सीटें आरजेडी से कांग्रेस को मिली हैं। दिलचस्प बात यह है कि इन सीटों पर पिछली बार एनडीए का कब्जा रहा था। वहीं, कांग्रेस ने अपनी एक जीती हुई सीट महाराजगंज आरजेडी के लिए छोड़ दी। गठबंधन के बावजूद दोनों दलों के बीच पांच सीटों पर फ्रेंडली फाइट की स्थिति बनी हुई है। इसके अलावा कांग्रेस और सीपीआई के बीच भी कुछ सीटों पर सीधी टक्कर होने की संभावना है।
फ्रेंडली फाइट और सीट शेयरिंग का दुष्परिणाम
कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरु ने टिकट बंटवारे में आरजेडी के दबाव को झुकने नहीं दिया, लेकिन इस सख्ती की वजह से कई जगह सहयोगी दलों में मतभेद पैदा हुए। नतीजा यह हुआ कि 60 में से लगभग 10 सीटों पर कांग्रेस को फ्रेंडली फाइट झेलनी पड़ रही है। इससे महागठबंधन के मतों में बिखराव की आशंका बढ़ गई है।
स्ट्राइक रेट का सपना कहीं न बन जाए बुरा सपना
कांग्रेस इस बार स्ट्राइक रेट सुधारने के लिए नए चेहरों और सामाजिक समीकरण पर दांव लगा रही है। लेकिन टिकट बंटवारे में देरी, उम्मीदवारों के बदलाव और आंतरिक असंतोष ने पार्टी की रणनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अगर समय रहते कांग्रेस ने अपने असंतुष्ट नेताओं को नहीं संभाला, तो स्ट्राइक रेट सुधारने का सपना “हिट विकेट” साबित हो सकता है।