अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा प्रस्तुत 20-बिंदु शांति प्रस्ताव को लेकर नया अंतरराष्ट्रीय चर्चा छिड़ी हुई है। यह प्रस्ताव गाजा संघर्ष को समाप्त कराने और स्थायी शांति लाने की दिशा में एक व्यापक रूपरेखा पेश करता है। इस योजना का एक अहम हिस्सा हिरासतियों की रिहाई, इज़राइल की आंशिक वापसी और संक्रमण कालीन प्रशासन व्यवस्था शामिल है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस प्रस्ताव का खुले दिल से स्वागत किया। उन्होंने इसे “निर्णायक प्रगति” की दिशा में कदम बताते हुए कहा कि भारत शांति की इस पहल के साथ खड़ा है। मोदी ने यह भी कहा कि भारत सभी प्रयासों का समर्थन जारी रखेगा जो टिकाऊ और न्यायसंगत शांति को सुनिश्चित करें।
प्रस्ताव के मुख्य बिंदु
-
युद्ध विराम और इज़राइली हमलों को तत्काल रोकना
-
बंदियों और बंधकों की अदला-बदली
-
इज़राइल की सीमित वापसी
-
गाजा के प्रशासन के लिए अंतरराष्ट्रीय स्थिरता बोर्ड
-
सहायता, पुनर्निर्माण और सामाजिक पुनरुद्धार
ये बिंदु शांति स्थापना और संघर्ष पर नियंत्रण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माने जा रहे हैं।
आलोचनाएँ और चुनौतियाँ
हालाँकि भारत का रुख व्यापक अंतरराष्ट्रीय समुदाय के दृष्टिकोण से देखा जा रहा है, विपक्षी दलों ने इस समर्थन पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस ने मोदी की इस नीति को “नैतिक कायरता” कहा और चार महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं।
प्रस्ताव को लागू करना आसान नहीं है क्योंकि हामास ने कई बिंदुओं पर विरोध जताया है। विशेषकर यदि गाजा का राजनीतिक नियंत्रण, सुरक्षा व्यवस्था और हथियार निरस्त्रीकरण की बात हो।
प्रधानमंत्री मोदी के शब्द — “भारत शांति के साथ है” — उस संदेश को स्पष्ट करते हैं कि भारत न केवल प्रतिक्रिया क्यों दे रहा है, बल्कि शांति अभ्यासों को नेतृत्व देने का मन बना रहा है। ट्रम्प की शांति योजना अभी तक विवाद और बाधाओं से घिरी है, लेकिन अगर यह लागू होती है, तो मिडिल ईस्ट में नए अध्याय की शुरुआत हो सकती है।



