भारत में कहां है कुबेर का मंदिर? श्रीकृष्ण से जुड़ी अनोखी कथा

दीपावली से दो दिन पहले मनाया जाने वाला धनतेरस पर्व धन और समृद्धि के देवता भगवान कुबेर की आराधना का विशेष दिन होता है। इस दिन देशभर में लोग कुबेर और मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं। मध्यप्रदेश के उज्जैन स्थित कुबेर मंदिर में इस अवसर पर विशेष उत्सव मनाया जाता है। शुक्रवार से ही यहां देशभर से श्रद्धालुओं का आना शुरू हो गया है। मान्यता है कि इस मंदिर में स्थापित कुबेर प्रतिमा की स्थापना स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने की थी।

 

कुंडेश्वर महादेव मंदिर में विराजित हैं कुबेर देवता

उज्जैन के मंगलनाथ मार्ग पर स्थित महर्षि संदीपनी आश्रम वह पवित्र स्थान है, जहां भगवान श्रीकृष्ण ने शिक्षा ग्रहण की थी। आश्रम परिसर में श्रीकृष्ण बलराम मंदिर के पास ही कुंडेश्वर महादेव मंदिर स्थित है, जो 84 महादेवों में से 40वें स्थान पर आता है। इसी मंदिर के गर्भगृह में भगवान कुबेर की यह प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर की छत श्री यंत्र के आकार की है, जो इसकी आध्यात्मिक ऊर्जा को और अधिक शक्तिशाली बनाती है।

 

मूर्ति की नाभि पर क्यों लगाते हैं इत्र

स्थानीय परंपरा के अनुसार, धनतेरस के दिन कुबेर जी के पेट या नाभि पर इत्र लगाने से घर-परिवार में समृद्धि आती है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि कुबेर की नाभि धन का प्रतीक है और उस पर इत्र लगाने से सौभाग्य व धन की वृद्धि होती है। यही वजह है कि देशभर से भक्त यहां आकर इत्र अर्पित करते हैं और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। शनिवार को धनतेरस पर मंदिर में दो बार विशेष आरती की जाती है, जिसमें सूखे मेवे, इत्र, फल और मिष्ठान का भोग लगाया जाता है।

 

भगवान श्रीकृष्ण और कुबेर की कथा

मंदिर के पुजारी शिवांश व्यास के अनुसार, यह प्रतिमा भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी है। जब श्रीकृष्ण ने महर्षि संदीपनी के आश्रम से शिक्षा पूरी की और द्वारका जाने लगे, तब गुरु दक्षिणा देने के लिए कुबेर धन लेकर आए थे। लेकिन गुरु माता ने उनसे अपने पुत्र को राक्षस शंखासुर के चंगुल से छुड़ाने की मांग की। श्रीकृष्ण ने गुरु पुत्र को मुक्त कर गुरु माता को सौंप दिया। इसके बाद कुबेर वहीं आश्रम में बैठ गए और आज भी इस मंदिर में बैठे रूप में विराजमान हैं।

 

शंगु काल की प्राचीन प्रतिमा का महत्व

पुजारी व्यास बताते हैं कि कुबेर जी की यह प्रतिमा अत्यंत प्राचीन है और इसे शंगु काल के शिल्पकारों ने बनाया था। यह प्रतिमा लगभग 800 से 1100 वर्ष पुरानी मानी जाती है और बेसाल्ट पत्थर से निर्मित है। करीब 3.5 फीट ऊंची प्रतिमा में कुबेर जी के चार हाथ हैं — दो में धन के पात्र, एक में सोम पात्र और चौथा आशीर्वाद की मुद्रा में है। प्रतिमा की तीखी नाक, उभरा हुआ पेट और अलंकार कुबेर जी के दिव्य स्वरूप को प्रदर्शित करते हैं।

 

दर्शन मात्र से धन प्राप्ति की मान्यता

स्थानीय मान्यता है कि कुबेर देव के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति के जीवन में धन और सौभाग्य का आगमन होता है। धनतेरस के दिन यहां दर्शन करने से घर में लक्ष्मी और कुबेर की कृपा प्राप्त होती है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर स्थित नंदी की अनोखी प्रतिमा भी भक्तों का ध्यान खींचती है। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि ऐतिहासिक और वास्तुकला के दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

 

धनतेरस 2025 पर उज्जैन में भक्तों की भीड़

इस वर्ष धनतेरस शनिवार, 18 अक्टूबर 2025 को मनाया जा रहा है। उज्जैन के कुबेर मंदिर में हजारों श्रद्धालु विशेष पूजा के लिए पहुंच चुके हैं। मंदिर में पूरे दिन भजन, आरती और दीपोत्सव का आयोजन होगा। कुबेर देवता की पूजा के साथ ही धन और वैभव की कामना करते हुए भक्त श्रीकृष्ण और महादेव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

 

उज्जैन का कुबेर मंदिर अपनी दिव्यता और ऐतिहासिकता के लिए प्रसिद्ध है। यहां कुबेर जी की प्रतिमा की स्थापना स्वयं श्रीकृष्ण ने की थी। धनतेरस पर भक्त इत्र अर्पित कर समृद्धि की प्रार्थना करते हैं। मंदिर की अनोखी बनावट, प्राचीन प्रतिमा और श्रीकृष्ण से जुड़ी कथा इसे देश के सबसे खास कुबेर मंदिरों में से एक बनाती है।

 

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