जयपुर। विजयादशमी, जिसे दशहरा भी कहा जाता है, असत्य पर सत्य और अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक पर्व है। इस पावन अवसर पर भारतीय जनता पार्टी, राजस्थान के प्रदेश मीडिया सह-प्रभारी किसान मोर्चा हेमंत भायाजी ने प्रदेशवासियों सहित सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित की हैं।
भायाजी ने कहा कि विजयादशमी केवल रावण दहन का पर्व नहीं है, बल्कि यह अच्छाई, न्याय और धर्म की जीत का संदेश देता है। भगवान श्रीराम ने जिस तरह आदर्श, साहस और सत्य के मार्ग पर चलते हुए अधर्म का अंत किया, वही प्रेरणा आज भी समाज के लिए प्रासंगिक है।
अपने संदेश में हेमंत भायाजी ने कहा कि विजयादशमी हमें यह सिखाती है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, अंततः विजय सत्य और धर्म की ही होती है। आज के समय में जब समाज अनेक चुनौतियों से जूझ रहा है, तब श्रीराम के आदर्श और मर्यादा सबसे बड़ी सीख हैं।
उन्होंने जनता से आह्वान किया कि इस पर्व को केवल उत्सव के रूप में न मनाएँ, बल्कि इसे आत्मचिंतन और आत्मसुधार का अवसर भी बनाएँ।
भायाजी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व सदैव ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ की भावना से काम कर रहा है। विजयादशमी जैसे पावन पर्व हमें याद दिलाते हैं कि व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठकर समाज और राष्ट्र के उत्थान के लिए योगदान देना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हमें इस अवसर पर यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने जीवन से नकारात्मकता, बुराइयों और विभाजन की प्रवृत्ति को दूर करेंगे। ठीक उसी तरह जैसे भगवान श्रीराम ने रावण के अहंकार का अंत किया।
विजयादशमी पूरे भारत में बड़े हर्षोल्लास से मनाई जाती है। रामलीला और रावण दहन इसके प्रमुख आकर्षण हैं। राजस्थान सहित पूरे देश में इस दिन लोगों की आस्था और श्रद्धा का अनूठा संगम देखने को मिलता है।
हेमंत भायाजी ने कहा कि यह पर्व हमारी संस्कृति की गहराई और समृद्ध परंपरा का प्रतीक है। हमें अपनी नई पीढ़ी को इस संस्कृति से जोड़ने की जिम्मेदारी भी उठानी होगी।
अंत में हेमंत भायाजी ने प्रदेशवासियों से आग्रह किया कि वे विजयादशमी पर मिलजुलकर समाज में भाईचारे, एकता और सद्भाव का संदेश फैलाएँ। उन्होंने कहा कि जब हम मिलकर अच्छाई का मार्ग अपनाएँगे, तभी वास्तविक अर्थों में दशहरे का पर्व सार्थक होगा।
सायला उपखंड के आकवा गाँव और आसपास के क्षेत्रों में नवरात्रि के चौथे दिन गरबा महोत्सव की भव्य धूम देखने को मिली। श्री चामुंडा गरबा मंडल गोगाजी मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं ने दर्शन किए और गरबों का आनंद उठाया। इस दौरान मंदिर और महोत्सव स्थल को आकर्षक रोशनी, तोरण द्वार और फूल मालाओं से सजाया गया।
शाम ढलते ही गाँव और आस-पास के इलाकों से श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगी। हर उम्र के लोग – बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक – गरबा महोत्सव का हिस्सा बने। पूरे माहौल में भक्ति और उत्साह का संगम नजर आया।
गरबा महोत्सव की खासियत इसकी सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ रहीं। गायक प्रकाश देवासी आकवा और चव्यन ठाकुर एंड पार्टी ने राजस्थानी और गुजराती गरबों की मनमोहक प्रस्तुति दी। उनकी आवाज़ और धुन पर श्रद्धालु झूम उठे।
वहीं, डांसर विक्की जालोरी ने अपनी नृत्य प्रस्तुति से दर्शकों का दिल जीत लिया। इसके अलावा कॉमेडियन और अन्य कलाकारों ने भी मंच पर रंग जमाया। इन प्रस्तुतियों ने महोत्सव को और भी मनोरंजक बना दिया।
इस गरबा महोत्सव की एक बड़ी खासियत यह रही कि इसका आयोजन आकवा गाँव के सभी ग्रामीणों ने मिलकर किया।
सभी ने मिलकर सजावट, मंच, व्यवस्था और प्रसाद की जिम्मेदारी संभाली।
यह आयोजन केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं रहा, बल्कि ग्रामीणों की एकजुटता और सहयोग की मिसाल भी पेश की।
गरबा सिर्फ पूजा या आस्था का माध्यम नहीं है। यह भारतीय संस्कृति और परंपरा का जीवंत प्रतीक है।
जीवाणा क्षेत्र के लोग गरबा महोत्सव में अपनी पारंपरिक संगीत और नृत्य शैलियों को प्रस्तुत करते हैं।
इससे नई पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ने का अवसर मिलता है।
आज जब आधुनिकता तेजी से बढ़ रही है, ऐसे आयोजन युवाओं को उनकी जड़ों से जोड़े रखते हैं।
गरबा महोत्सव से न केवल धार्मिक भावना प्रकट होती है बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का भी संदेश मिलता है।
जालोर। संवाददाता प्रताप चौधरी
भारत और पाकिस्तान के बीच फाइनल मुकाबलों का पूरा रिकॉर्ड जानिए। 12 बार भिड़ंत में पाकिस्तान 8 बार जीता और भारत केवल 4 बार विजेता बना।
भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट सिर्फ खेल नहीं बल्कि करोड़ों फैन्स की भावनाओं का हिस्सा है। हर मैच में रोमांच होता है, लेकिन फाइनल मुकाबलों की कहानी अलग है। पिछले 18 साल से भारत किसी भी फाइनल में पाकिस्तान को नहीं हरा पाया है।
दोनों टीमें अब तक 12 फाइनल में आमने-सामने आईं। इनमें से पाकिस्तान ने 8 बार जीत हासिल की। भारत सिर्फ 4 बार ही ट्रॉफी उठा सका। यह आंकड़ा बताता है कि फाइनल मुकाबलों में पाकिस्तान का पलड़ा भारी रहा है।
भारत ने 2008 में पाकिस्तान को फाइनल में हराया था। इसके बाद से आज तक कोई जीत नहीं मिल पाई।
हालांकि, वर्ल्ड कप और टी20 वर्ल्ड कप में भारत का रिकॉर्ड शानदार है। इन टूर्नामेंट्स में पाकिस्तान ने कभी भी भारत को नॉकआउट मैच में नहीं हराया। लेकिन जब बात फाइनल की आती है, तो नतीजे पलट जाते हैं।
फाइनल मुकाबलों में दबाव सबसे बड़ी चुनौती बन जाता है। भारतीय खिलाड़ियों पर हमेशा फैन्स और मीडिया की उम्मीदों का बोझ रहता है। इसी कारण खिलाड़ी कभी-कभी अपना नैचुरल गेम नहीं खेल पाते।
दूसरी ओर, पाकिस्तान अक्सर अंडरडॉग के रूप में उतरता है। बिना ज्यादा दबाव के खिलाड़ी खुलकर खेलते हैं। यही वजह है कि वे फाइनल में भारत पर हावी हो जाते हैं।
कई फाइनल आज भी यादगार हैं। 1985 की बेंसन एंड हेज़ चैंपियनशिप, 1999 का एशियन टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल और 2004 का एशिया कप – इन सभी मौकों पर पाकिस्तान विजेता बना।
वहीं भारत ने 1984 का एशिया कप और 2008 की ट्राई सीरीज़ जैसे खिताब अपने नाम किए।
आज की भारतीय टीम बेहद संतुलित है। रोहित शर्मा और विराट कोहली जैसे दिग्गजों के साथ शुभमन गिल और ईशान किशन जैसे युवा खिलाड़ी भी शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं।
हालांकि, पाकिस्तान के पास भी बाबर आज़म और शाहीन अफरीदी जैसे सितारे हैं। ऐसे में आने वाला हर फाइनल दोनों देशों के लिए खास होगा।
वाराणसी में 18 सितंबर 2025 को सोने-चांदी की कीमतों में थोड़ी गिरावट हुई है। 24 कैरेट सोने की कीमत प्रति ग्राम करीब ₹11,132 दर्ज की गई है, जो पिछली तुलना में लगभग ₹54 प्रति ग्राम कम है। इसी तरह 22 कैरेट सोने का भाव भी गिरावट के संकेत दे रहा है, लगभग ₹10,205 प्रति ग्राम। 18 कैरेट सोना भी ₹8,347 प्रति ग्राम के आसपास व्यापार हो रहा है। ये भाव ब्रह्माण्ड व्यापारियों और स्थानीय ज्वैलर्स द्वारा तय किए जा रहे हैं, जिसमें गोल्ड मार्केट की मौजूदा स्थिति, प्रतिस्पर्धा, मांग-आपूर्ति और वैश्विक सोने की दरों का भी प्रभाव शामिल है।
चांदी के मामलों में, वाराणसी में मानक शुद्धता (999 प्योरिटी) वाली चांदी का भाव लगभग ₹1,271 प्रति 10 ग्राम है, जो पिछले दिन की तुलना में कुछ हल्की वृद्धि है। प्रति ग्राम चांदी का भाव ₹127 के आसपास है। 100 ग्राम और 1 किलो में चांदी की कीमत भी उसी अनुपात में बढ़ा है।
सोने की कीमतों में गिरावट का एक मुख्य कारण है कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में सोने की मांग कम हुई है और सॉवरेन बॉन्ड रेट्स या दूसरे मेटल्स की तुलना में सोने में निवेश थोड़ा सुस्त पड़ा है। इसके अलावा, डॉलर की स्थिति और अंतरराष्ट्रीय ब्याज दरों का प्रभाव भी यहाँ देखा जा रहा है — जैसे कि डॉलर मजबूत हुआ तो सोने के आयात की लागत बढ़ती है, जिससे कम भाव पर भी उतनी मांग नहीं बन पाती।
चांदी की मामूली बढ़त का कारण घरेलू मांग और छोटे-उद्योगों में उपयोग की पुनरावृत्ति माना जा रहा है। चांदी का उपयोग बर्तन, गहने, औद्योगिक उपकरणों में होता है, और त्योहारी सीज़न की शुरुआत होनेवाली है, इसलिए स्थानीय स्तर पर मांग में हल्की बढ़त बनी है।
इस तरह से, यदि आप सोना-चांदी खरीदने का सोच रहे हो, तो यह समय थोड़ा सोच-विचार के बाद लेना बेहतर होगा। गिरावट के कारण थोड़ा लाभ हो सकता है, लेकिन यह गिरावट स्थायी न हो और भविष्य में फिर से कीमतों में वृद्धि हो सकती है। मार्केट अपडेट्स और स्थानीय ज्वैलर्स के भावों पर ध्यान देना ज़रूरी है।
सूर्य ग्रहण एक खगोलीय घटना है जो हजारों सालों से मानव सभ्यता में आध्यात्मिक, ज्योतिषीय और सांस्कृतिक महत्व रखती है। ज्योतिषी मानते हैं कि ग्रहों की स्थिति, विशेषकर सूर्य और चंद्रमा की स्थिति, व्यक्ति के जीवन पर गहरा प्रभाव डालती है। वर्ष 2025 के इस सूर्य ग्रहण के दौरान कुछ राशियों पर इसके सकारात्मक प्रभाव की संभावना ज्योतिषीय सूत्रों और खगोलीय योगों के आधार पर दिखाई दे रही है। कहा जा रहा है कि ग्रहण के समय यदि व्यक्ति अपने कर्मों, सोच और जीवनशैली की ओर ध्यान दे, तो यह ग्रहण नकारात्मकता को कम कर सकता है और कुछ राशियों के लिए नए अवसरों की शुरुआत कर सकता है।
ग्रहण से लाभ प्राप्त करने के लिए मूलभूत बात है कि व्यक्ति अपने जीवन में सतर्कता बरते। ग्रहण के दौरान होने वाली खगोलीय ऊँच-नीच, सूर्य-शनि आदि ग्रहों की दृष्टि, उनके आपस में बन रहे योग जैसे समसप्तक योग आदि, ये सभी मिलकर राशियों की स्थिति निर्धारित करते हैं। इसके अनुसार, उन लोगों की राशियाँ जिनका सूर्य ग्रहण के समय सकारात्मक प्रभाव लेने वाली परिस्थिति में होंगी, उन्हें नए अवसर मिलेंगे, जीवन में सहजता बढ़ेगी और मानसिक शक्ति और आत्मविश्वास में वृद्धि होगी।
ज्योतिष विद्वानों का अनुमान है कि इस ग्रहण का सकारात्मक प्रभाव उन राशियों पर ज़्यादा होगा जिनकी कुंडली में सूर्य और लाभदायक ग्रहों की स्थिति अनुकूल हो। उदाहरण स्वरूप, यदि सूर्य ग्रहण के समय किसी की राहु-केतु की स्थिति ठीक हो, या चंद्रमा की दृष्टि शुभ ग्रहों की ओर हो, तो उस व्यक्ति को मानसिक स्पष्टता, देरी हुई योजनाओं का पूरा होना, यात्रा अवसर, शिक्षा कार्यों में सफलता और आर्थिक लाभ की संभावनाएँ बढ़ सकती हैं।
साथ ही, ग्रहण के बाद कुछ राशियों के लोगों का स्वास्थ्य बेहतर हो सकता है यदि उन्होंने सूर्य ग्रहण के पूर्व और पश्चात् उचित उपाय कर लिए हों जैसे कि शुद्ध जल, सही आहार, पर्याप्त आराम और ग्रहण के समय अँधेरे या धूप सीधे न होने देना। सकारात्मक सोच, ध्यान, पूजा या ध्यान साधना, और आचार-व्यवहार में शुद्धता बनाए रखना भी लाभकारी माना जाता है।
इस सूर्य ग्रहण से विशेषतः चार राशियों को लाभ मिलने की संभावना ज़्यादा है क्योंकि उनके जीवन, भाग्य और ग्रहों की स्थिति अनुकूल मानी जा रही है:
मिथुन राशि वालों के लिए यह समय शिक्षा, संचार, सौहार्द और सामाजिक संबंधों में विशेष सफलता लेकर आ सकता है। यदि उन्होंने अपने पुराने विवादों को सुलझाया हो, तो मित्रों और परिवार के मध्य मेलजोल बेहतर होगा। नई शिक्षा या कोर्स शुरू कर सकते हैं, भाषा, लेखन या मीडिया से जुड़े कामों में प्रगति संभव है।
तुला राशि के जातकों के लिए यह ग्रहण आर्थिक दृष्टि से सुखद संकेत लेकर आ सकता है। निवेशों में वृद्धि, पैतृक संपत्ति से लाभ, कुछ अप्रत्याशित धन लाभ की संभावना बनी हुई है। साझेदारी या व्यापार के मामलों में समझौते सफल हो सकते हैं। इसके लिए यह ज़रूरी है कि तुला राशि वाले अपने बजट और व्यय पर नियंत्रण रखें और किसी भी जोखिम भरे निर्णय से पहले सोच-विचार करें।
वृश्चिक राशि वालों को इस समय शक्ति और मनोबल की वृद्धि महसूस होगी। आत्मविश्वास में बढ़त के साथ जीवन के लक्ष्य स्पष्ट होंगे। यदि पिछले समय में कोई अवसर छूट गया हो, तो अब पुनः अवसर प्राप्त हो सकता है। वृश्चिक राशि वाले स्वास्थ्य के मामले में विशेष रूप से सुरक्षित रहेंगे यदि उन्होंने ग्रहण से पूर्व और पश्चात् संतुलित आहार और पर्याप्त नींद का ध्यान रखा हो।
मीन राशि के लिए यह ग्रहण आध्यात्मिक उन्नति और आंतरिक शांति का प्रकाश लेकर आयेगा। वे अपने अंदर छुपी कला, संगीत, लेखन या अन्य रचनात्मक क्षेत्रों में सक्रिय हो सकते हैं। मीन राशि वालों को अपनी सहज प्रवृत्ति और सहानुभूति से लाभ होगा। दूसरों की सहायता करना, सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यों में शामिल होना उनके लिए सकारात्मक अनुभव साबित होगा।
इन राशियों के जातकों को सलाह दी जाती है कि ग्रहण के समय धूप, बर्तन बिखेरना, किसी भी तरह की उत्तेजना या ज़बरदस्ती के विचार से दूर रहें। ग्रहण के बाद हल्के, पौष्टिक आहार लें, शुद्ध जल पिएँ और मानसिक विश्राम के लिए ध्यान या प्रार्थना करें।
सऊदी अरब और पाकिस्तान ने एक नया रक्षा समझौता (Strategic Mutual Defence Agreement) किया है, जिसमें कहा गया है कि अगर किसी एक देश पर हमला होगा, तो दोनों देश मिलकर जवाब देंगे। यह समझौता इस समय हुआ है जब मध्य-पूर्व और दक्षिण एशिया दोनों में तनाव बढ़े हुए हैं। दोनों देश सुरक्षा सहयोग को बढ़ाने, मिलिट्री तकनीक साझा करने और संयुक्त रक्षा उपायों को सुदृढ़ करने की योजना बना रहे हैं।
समझौते पर सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने हस्ताक्षर किए। इन हस्ताक्षरों के बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या इस समझौते के बाद सऊदी अरब भारत-पाकिस्तान के किसी संघर्ष में सीधा हिस्सा ले सकता है? भारत इस समझौते को ध्यान से देख रहा है और राष्ट्रीय सुरक्षा हितों की समीक्षा कर रहा है कि इस तरह का रक्षा गठबंधन क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को किस तरह प्रभावित करेगा।
इस समझौते से स्पष्ट है कि सऊदी अरब पाकिस्तान के साथ अपनी रक्षा नीति को औपचारिक रूप से मजबूत करना चाहता है। इससे पहले भी दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग रहा है, लेकिन यह पहला मौका है जब सेना के स्तर पर “आपसी रक्षा” की गारंटी ली गई है कि एक देश पर हमला है, तो दूसरा देश पीछे नहीं देखेगा। इसे रणनीतिक कूटनीति की एक बड़ी चाल माना जा रही है।
भारत की प्रतिक्रिया मौजूदा समय में संयमित रही है। भारत सरकार कह रही है कि वह इस समझौते के असर को गंभीरता से देखेगी और राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर सभी विकल्प खुले हैं। विदेश मंत्रालय ने यह स्पष्ट किया है कि भारत की नीति रहेगी कि क्षेत्रीय स्थिरता बनी रहे और किसी भी बाहरी गठबंधन को युद्ध-स्तर पर लिया जाना हो, तो उसकी स्थितियों और निहितार्थों पर विचार होगा।
यह समझौता इस समय आया है जब मध्य-पूर्व में नई सिक्योरिटी चुनौतियाँ उठ रही हैं और कुछ गल्फ देशों को लगता है कि पारंपरिक सुरक्षा साझेदारों पर भरोसा कम हो रहा है। सऊदी अरब इस दौर में सुरक्षा और कूटनीति की अपनी भूमिका को पुनर्परिभाषित कर रहा है। पाकिस्तान की ओर से यह कदम सुरक्षा चिंताओं, शोध एवं खुफिया सहयोग, और हथियारों के पूरक हिस्सों की साझा जरूरतों को पूरा करना है।
अगर कभी भारत-पाकिस्तान के बीच वास्तविक सैन्य संघर्ष होता है, तो यह समझौता सऊदी अरब को किसी स्थिति में मिलिट्री सहायता, इंटरसेप्टर या रणनीतिक समर्थन देने की बाध्यता उत्पन्न कर सकता है। हालांकि, यह पूरी तरह तय नहीं कि समझौते में कितनी सीमा तक “युद्ध में शामिल होना” शामिल है, क्योंकि अक्सर ऐसे समझौते में “रक्षा प्रवर्तन,” “मिलिट्री सहयोग” और “साहायता” जैसे शब्द शामिल होते हैं, पर युद्ध-स्तर की भागीदारी स्पष्ट नहीं होती।
महाराष्ट्र या पंजाब नहीं, बल्कि विदेश नीति, रणनीतिक रक्षा साझेदारियाँ, अंतरराष्ट्रीय दबाव, और क्षेत्रीय सुरक्षा गठबंधन ये सभी विषय अब भारत के लिए ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गए हैं। भारत को diplomatically तैयार रहने की जरूरत है, अपने सीमाओं, एयर बेस और रक्षा प्रणालियों को मजबूत करने की जरूरत है, और अपने रणनीतिक साझेदारों से समर्थन सुनिश्चित करना होगा।
बॉलीवुड निर्देशक-निर्माता करण जौहर ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल की है जिसमें उन्होंने यह माँग की है कि उनके नाम, चेहरे की तस्वीरों, आवाज़ और पहचान के अनधिकृत उपयोग पर रोक लगाई जाए। याचिका में यह भी कहा गया है कि उनकी पहचान से जुड़े AI-जनित चित्र, deepfake वीडियो या अन्य डिज़िटल क्लिप्स की गलत व्याख्या और उनका दुरुपयोग हो रहा है, जिससे उनके निजी अधिकार और उनकी सार्वजनिक छवि को नुकसान पहुंच सकता है।
करण जौहर की याचिका इस समय दायर हुई है जब बॉलीवुड में सेलिब्रिटी पर्सनालिटी राइट्स (personality rights) पर कानून और सार्वजनिक चर्चा दोनों तीव्र हैं। इससे पहले भी कई अभिनेत्रियों और अभिनेताओं ने न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया है ताकि उनका नाम, फोटो और आवाज़ बिना अनुमति प्रयोग किए न जाए। करण जौहर की कानूनी टीम ने तर्क दिया है कि इंटरनेट और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर ऐसी चीज़ें तेजी से फैलती हैं, और यदि समय रहते न्याय न मिले तो यह सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक नुकसान भी कर सकती हैं।
करण जौहर ने याचिका में कुछ प्रमुख कदमों की माँग की है: एक ओर जहाँ कहा गया है कि उनके नाम और इमेज को वाणिज्यिक रूप से प्रयोग करने वाले मैर्चेंडाइज, टी-शर्ट, पोस्टर आदि को उन लोगों को अनुमति मिलने पर ही बेचा जाए; दूसरी ओर AI द्वारा तैयार की गई सामग्री जो उनकी आवाज़ या चेहरे की नक़ल करती हो, उस पर तुरंत रोक लगानी चाहिए।
न्यायालय ने इस मामले पर ध्यान देना शुरू कर दिया है और संभव है कि एक अंतरिम आदेश जारी किया जाए जिससे कहा जाए कि कोई भी प्लेटफार्म या वेबसाइट करण जौहर की सहमति के बिना उनकी पहचान, चित्र या आवाज़ का प्रयोग न करे। कानूनी विशेषज्ञ बता रहे हैं कि यह मामला ‘पर्सनालिटी राइट्स’ के दायरे को और स्पष्ट कर सकता है, खासकर डिज़िटल युग में जहाँ AI टूल्स से deepfake बनाना आसान हो गया है।
इस याचिका से यह स्पष्ट हो गया है कि सेलिब्रिटी पर्सनालिटी राइट्स के मामले सिर्फ़ आँकड़ों या मीडिया खबरों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह निजी पहचान, सम्मान और आर्थिक हितों का मामला है। करण जौहर का कदम इस दिशा में अन्य हस्तियों के लिए भी मिसाल बन सकता है।
टीआरपी रिपोर्ट्स ने स्पष्ट कर दिया है कि अनुपमा
सीरियल ने अभी हाल ही में सबसे ज़्यादा व्यूअरशिप प्राप्त की है और क्योंकि सास भी कभी बहू थी
(Kyuki Saas Bhi Kabhi Bahu Thi) को पीछे छोड़ दिया है। इस सीज़न में अनुपमा
के एपिसोड्स ने दर्शकों को इस तरह बांधा कि हर घर में इस कहानी की चर्चा हो रही है। इसकी कहानी, पात्रों का इमोशनल संघर्ष, और हर करदार की भूमिका की गहराई ने लोगों का दिल जीत लिया है। टीवी जगत में जब भी यह प्रकार का बदलाव होता है कि एक पुराने लोकप्रिय शो को टॉप से हटाया जाए, तो वह सिर्फ़ टीआरपी की संख्या नहीं होती बल्कि दर्शकों की बदलती पसंद और कंटेंट में गुणवत्ता का संकेत होती है।
इस ट्रेंड के पीछे कई कारण हैं। सबसे प्रमुख कारण कहानी का यथार्थ पसंद होना है—जहाँ पारिवारिक रिश्ते, संघर्ष और व्यक्तिगत समस्याएँ एक दूसरे से जुड़ी हुईं हैं। अनुपमा
ने अपनी पटकथा में रोज़मर्रा के जीवन के पहलुओं को ऐसा पेश किया है कि दर्शक खुद को उन परिस्थितियों से जोड़ते देख रहे हैं। इसके अलावा, कास्टिंग का दम और अभिनय की बारीकियाँ इस शो को वहां ले जाकर खड़ी करती हैं जहाँ दर्शक उम्मीद के सापेक्ष महसूस करते हैं।
जब अनुपमा
ट्रेंडिंग में ऊपर आ रही है, क्योंकि सास भी कभी बहू थी
की व्यूअरशिप में गिरावट देखी जा रही है। इस शो में पुराने किरदारों की वापसी ने शुरुआत में जो उत्साह पैदा किया था, वह अब उतना असर नहीं कर पा रहा। दर्शकों का कहना है कि कहानी में पुरानी यादों का जमाना अच्छा है लेकिन कंटेंट नए ट्विस्ट और प्रगति के साथ तभी रोचक रहता है जब वह सिर्फ वंश परंपरा और ड्रामा पर निर्भर न हो।
वहीं, लोकप्रिय शो तारक मेहता का उल्टा चश्मा
और अन्य कॉमेडी सीरियल्स के दर्शक थोड़ा कम हो गए हैं, क्योंकि ऐतिहासिक समय स्लॉट्स और नए कंटेंट विकल्पों के चलते दर्शकों के पास वैकल्पिक मनोरंजन ज़्यादा हो गया है। एक ओर जहां Bigg Boss
जैसा रियलिटी शो शुरुआत में टीआरपी में टॉप पर था, वहीं उसकी व्यूअरशिप में भी कमी देखी जा रही है—लोग कहते हैं कि कंटेंट की नवीनीकरण और नए फैमिली-हिट शो से मुकाबला करना कठिन हो गया है।
मुंबई में हाल ही में आर्यन खान की सीरीज़ The Ba**ds of Bollywood* के प्रीमियर पर एक छोटा सा कपड़ा-चुनाव (आउटफिट) बड़ा मुद्दा बन गया। स्टैंड-अप कॉमेडियन समय रैना ने ब्लैक रंग की टी-शर्ट पहन रखी थी, जिस पर लिखा था- “Say No To Cruise”। यह साइड-टेक्स्ट बहुतों ने ये समझा कि यह 2021 के ड्रग केस की ओर इशारा है, जिसमें आर्यन खान उस क्रूज़ पार्टी मामले के नंबरों में थे। समय ने इस मामले पर कोई बयान नहीं दिया, लेकिन सोशल मीडिया पर लोगों ने अपनी राय ज़रूर व्यक्त की, कुछ ने इसे साहसिक कदम कहा, तो कुछ ने माना कि यह अनावश्यक और विवादास्पद था।
प्रीमियर इवेंट, जो मुंबई के बड़े मल्टीप्लेक्स / सिनेमाघर में हुआ था, वहाँ बॉलीवुड की जाने-माने हस्तियाँ मौजूद थीं, जैसे शाहरूख खान, गौरी खान, सुहाना और बराबर परिवार सहित कई अभिनेता-अभिनेत्रियाँ। कैमरे और मीडिया की झड़ी लगी हुई थी। समय रैना का यह आना और टी-शर्ट पहनना स्वाभाविक रूप से चर्चा का विषय बन गया। भाषणों, पोज़ देने और रेड कार्पेट के दौरान जब वे चलते दिखे तो फोटो खींचे गए और पोस्ट किए गए।
2021 में आर्यन खान उस विवादित मामले में थे जब नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) ने कोरेलिया इम्प्रेस क्रूज़ जहाज़ पर छापा मारा था। उस दौरान पार्टी आयोजित थी जिसमें कथित रूप से नशीले पदार्थों की तस्करी का मामला उठाया गया था। इसके बाद आर्यन कुछ समय जेल में रहे, फिर बाद में उन्हें बरी कर दिया गया था क्योंकि सबूत पर्याप्त नहीं थे। यह मामला देश में बहुत सुर्खियाँ बटोर चुका था और गॉसिप, मीडिया बहस और जनमत की उत्तेजना का विषय बना हुआ था।
अब जब उनके डेब्यू निर्देशन प्रोजेक्ट The Ba**ds of Bollywood* का प्रीमियर हो रहा है, किसी ने देखा कि समय रैना की टी-शर्ट का मैसेज उस पुराने विरोधी पब्लिक की याद दिलाता है, जिसमें “cruise” शब्द उस विशेष क्रूज़ पार्टी से जुड़ा हुआ था। सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर जैसे Reddit, X (पहले ट्विटर), इंस्टाग्राम आदि पर लोगों ने इस पर चर्चा की और मेमे भी बने। कुछ लोगों ने कहा कि यह मज़ाकिया था, कुछ ने कहा कि ये ज़्यादा तीखा कदम है जिसका त्याग किया जाना चाहिए।
कुछ लोगों ने समय की इस हरकत को “एक कॉमिक स्टंट” माना, जो किसी सुनियोजित प्रचार का हिस्सा हो सकती है, क्योंकि प्रीमियर के समय हमेशा कैमरा, मीडिया और बोल्ड स्टेटमेंट्स ज्यादा ध्यान आकर्षित करते हैं। वहीं, कुछ ने कहा कि ऐसे मामलों में संवेदनशीलता बनी रहनी चाहिए क्योंकि कानूनन मामला निपट चुका है और फिर भी लोग उस घटना को याद करते हैं।
इस घटना ने यह भी दिखाया कि कैसे सोशल मीडिया और पब्लिक इवेंट्स में एक छोटा स्टाइल चुनाव भी बड़ी बहस का कारण बन जाता है। फैशन, बयान, कपड़े — सबका सार्वजनिक अर्थ निकलने लगता है, खासकर जब वह किसी विवाद से जुड़ी हुई घटना से जुड़ा हो।
दिल्ली में भी Bihar जैसा SIR या “विशेष गहन संशोधन” लागू होने की तैयारी हो रही है। इसका मतलब है कि चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची की दी गई ड्राफ्ट सूची में जो लोग नहीं हैं या जिनके नाम ठीक नहीं हैं, उन्हें सूची में शामिल होने के लिए कुछ दस्तावेज़ दिखाने होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि आम नागरिकों की सुविधा और मत का अधिकार सुनिश्चित करना ज़रूरी है, इसलिए पहचान या निवास के दस्तावेज़ जो “वैध” हों, उन्हें स्वीकार किया जाना चाहिए।
सबसे बड़ा बदलाव यह है कि अब Aadhaar कार्ड को एक दस्तावेज़ के रूप में पहचान (identity proof) या निवास प्रमाण (proof of residence) के लिए स्वीकार किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि Aadhaar को SIR प्रक्रिया में “12वां दस्तावेज़” माना जाए, यानी उन 11 दस्तावेज़ों के अलावा जो पहले स्वीकार किए गए थे। लेकिन यह भी साफ किया गया है कि Aadhaar कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है। यानी किसी के नाम हटने या शामिल होने पर यह नहीं जाना जाएगा कि वह व्यक्ति नागरिक है या नहीं, सिर्फ पहचान-निवास के उद्देश्य से Aadhaar काम आएगा।
इसके अलावा, दस्तावेज़ों की विश्वसनीयता की जांच ज़रूरी होगी — जैसे कि दस्तावेज़ असली हैं या नहीं। बूथ-लेवल अधिकारी (Booth Level Officers / BLOs) और निर्वाचन अधिकारियों (Election Registration Officers / EROs) को निर्देश दिए गए हैं कि ऐसे दस्तावेज़ स्वीकार किए जाएँ और जहां संशय हो, सत्यापन किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि SIR प्रक्रिया “समूह में शामिल करना” (en masse inclusion) “समूह में बाहर करना” (exclusion) से ज़्यादा ज़रूरी है। यानी यह लक्ष्य होना चाहिए कि जितने मतदाता हो सकें, उन्हें सूची में शामिल किया जाएँ, न कि संसाधनों, दस्तावेज़ों की कमी या प्रक्रिया की दिक्कतों के कारण उन्हें बाहर कर दिया जाए।
अगर कोई व्यक्ति ड्राफ्ट सूची में नाम नहीं है, तो वह “claim” या “objection” दाखिल कर सकता है। ये प्रक्रिया ऑनलाइन या ऑफलाइन होंगी। दिल्ली में SIR लागू होने पर, ऐसे लोगों को मौका मिलेगा कि वे दस्तावेज़ दाखिल कर सकें, त्रुटियों की शिकायत कर सकें, और अपनी पहचान ठीक करवा सकें।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिए हैं कि चुनाव आयोग और संबंधित अधिकारियों को स्पष्ट सूचना देना चाहिए कि कौन से दस्तावेज़ स्वीकार होंगे, किन दस्तावेज़ों के लिए किस स्थिति में अतिरिक्त प्रमाण की आवश्यकता हो सकती है। ग्राम-स्तर या क्षेत्रीय स्तर पर लोगों तक यह जानकारी पहुँचे, ताकि कोई मतदाता “अनजाने में” बाहर न हो जाए।
यह सुनिश्चित किया जाना है कि प्रक्रिया भेदभाव, जाति-धर्म-भौगोलिक स्थिति आदि के आधार पर बाधित न हो। विशेष रूप से कमजोर वर्गों, प्रवासी किसानों, छात्रों, बुज़ुर्गों आदि को इस प्रक्रिया में सहायता मिलनी चाहिए।