अंता सीट पर इस बार मुकाबला बेहद दिलचस्प है। यहां भाजपा, कांग्रेस और निर्दलीय उम्मीदवार अपने-अपने सामाजिक समीकरण साधने में जुटे हैं। कुल मतदाता लगभग 2.25 लाख हैं, जिनमें माली समाज के 40 हजार, अनुसूचित जाति के 35 हजार और मीणा समुदाय के 30 हजार मतदाता निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। इसके अलावा धाकड़, ब्राह्मण, बनिया और राजपूत समाज भी वोट बैंक पर असर डालेंगे।
जातीय गणित और मुकाबले की दिशा
अंता विधानसभा में जातिगत समीकरण हर चुनाव की कुंजी रहे हैं। माली बहुल क्षेत्र में अकेले उनके वोट से जीत संभव नहीं है। माली और मीणा वोट जिस तरफ़ एकजुट होंगे, वहीं जीत का रुख तय होगा। भाजपा को पारंपरिक रूप से माली और शहरी वोटों का समर्थन मिलता रहा है, जबकि कांग्रेस मीणा और SC समुदाय पर भरोसा करती आई है। पूर्व विधायक प्रमोद जैन भाया भी इस बार मैदान में हैं। जातीय खींचतान ही इस चुनाव की दिशा तय करेगी।
नरेश मीणा की रणनीति
निर्दलीय उम्मीदवार नरेश मीणा दोनों दलों के वोट बैंक में सेंध लगाने की रणनीति में हैं। भाजपा ने मोरपाल सुमन के ज़रिए स्थानीय और माली दोनों समीकरण साधने की कोशिश की है। नरेश मीणा की उपस्थिति से चुनाव और अधिक पेचीदा बन गया है। उम्मीदवारों की व्यक्तिगत पकड़ और जातिगत समीकरण ही यहां हमेशा निर्णायक रहे हैं।
स्थानीय मुद्दे और जनता की सोच
अंता विधानसभा में चुनाव हमेशा जातीय संतुलन और उम्मीदवार की पकड़ पर टिका रहता है। बिजली, पानी, सड़क और रोजगार जैसे मुद्दे चर्चा में रहते हैं, लेकिन मतदान के समय जातिगत जोड़-घटाव ही चुनाव का परिणाम तय करता है। इस बार भी सियासी बिसात बिछ चुकी है और मोहरे सज चुके हैं। जनता की अंतिम चाल ही बाज़ी पलट सकती है।
भाजपा और कांग्रेस की तैयारी
भाजपा मोरपाल सुमन के ज़रिए माली और स्थानीय वोटों को साधने की कोशिश में है। वहीं कांग्रेस प्रमोद जैन भाया के ज़रिए मीणा और SC वोटों पर भरोसा कर रही है। दोनों दलों के रणनीतिक कदमों से यह चुनाव और भी रोमांचक बन गया है। प्रत्येक वोट की अहमियत इस त्रिकोणीय मुकाबले में निर्णायक साबित होगी।