दिल्ली में भी Bihar जैसा SIR या “विशेष गहन संशोधन” लागू होने की तैयारी हो रही है। इसका मतलब है कि चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची की दी गई ड्राफ्ट सूची में जो लोग नहीं हैं या जिनके नाम ठीक नहीं हैं, उन्हें सूची में शामिल होने के लिए कुछ दस्तावेज़ दिखाने होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि आम नागरिकों की सुविधा और मत का अधिकार सुनिश्चित करना ज़रूरी है, इसलिए पहचान या निवास के दस्तावेज़ जो “वैध” हों, उन्हें स्वीकार किया जाना चाहिए।
सबसे बड़ा बदलाव यह है कि अब Aadhaar कार्ड को एक दस्तावेज़ के रूप में पहचान (identity proof) या निवास प्रमाण (proof of residence) के लिए स्वीकार किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि Aadhaar को SIR प्रक्रिया में “12वां दस्तावेज़” माना जाए, यानी उन 11 दस्तावेज़ों के अलावा जो पहले स्वीकार किए गए थे। लेकिन यह भी साफ किया गया है कि Aadhaar कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है। यानी किसी के नाम हटने या शामिल होने पर यह नहीं जाना जाएगा कि वह व्यक्ति नागरिक है या नहीं, सिर्फ पहचान-निवास के उद्देश्य से Aadhaar काम आएगा।
इसके अलावा, दस्तावेज़ों की विश्वसनीयता की जांच ज़रूरी होगी — जैसे कि दस्तावेज़ असली हैं या नहीं। बूथ-लेवल अधिकारी (Booth Level Officers / BLOs) और निर्वाचन अधिकारियों (Election Registration Officers / EROs) को निर्देश दिए गए हैं कि ऐसे दस्तावेज़ स्वीकार किए जाएँ और जहां संशय हो, सत्यापन किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस: न्याय, पारदर्शिता और समावेशिता
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि SIR प्रक्रिया “समूह में शामिल करना” (en masse inclusion) “समूह में बाहर करना” (exclusion) से ज़्यादा ज़रूरी है। यानी यह लक्ष्य होना चाहिए कि जितने मतदाता हो सकें, उन्हें सूची में शामिल किया जाएँ, न कि संसाधनों, दस्तावेज़ों की कमी या प्रक्रिया की दिक्कतों के कारण उन्हें बाहर कर दिया जाए।
अगर कोई व्यक्ति ड्राफ्ट सूची में नाम नहीं है, तो वह “claim” या “objection” दाखिल कर सकता है। ये प्रक्रिया ऑनलाइन या ऑफलाइन होंगी। दिल्ली में SIR लागू होने पर, ऐसे लोगों को मौका मिलेगा कि वे दस्तावेज़ दाखिल कर सकें, त्रुटियों की शिकायत कर सकें, और अपनी पहचान ठीक करवा सकें।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिए हैं कि चुनाव आयोग और संबंधित अधिकारियों को स्पष्ट सूचना देना चाहिए कि कौन से दस्तावेज़ स्वीकार होंगे, किन दस्तावेज़ों के लिए किस स्थिति में अतिरिक्त प्रमाण की आवश्यकता हो सकती है। ग्राम-स्तर या क्षेत्रीय स्तर पर लोगों तक यह जानकारी पहुँचे, ताकि कोई मतदाता “अनजाने में” बाहर न हो जाए।
यह सुनिश्चित किया जाना है कि प्रक्रिया भेदभाव, जाति-धर्म-भौगोलिक स्थिति आदि के आधार पर बाधित न हो। विशेष रूप से कमजोर वर्गों, प्रवासी किसानों, छात्रों, बुज़ुर्गों आदि को इस प्रक्रिया में सहायता मिलनी चाहिए।