गिरिडीह की सड़क पर मासूम की मौत ने मचाया हंगामा

झारखंड के गिरिडीह जिले में पलमरुआ गांव की सड़क ने इस दिन एक दर्दनाक दृश्य देखा, जिसने पूरे इलाके को सुस्ती में ला दिया। एक मवेशी लदे पिकअप वैन ने दो-वर्ष के मासूम गुलाबचंद कनिया (नाम संभाल कर लिया गया है) को रौंद दिया, जो पलमरुआ का निवासी था। घटना उसी लोकल नयनपुर मुख्य मार्ग पर हुई, जहाँ यह वैन तेज रफ्तार में थी। जैसे ही परिवार और स्थानीय लोगों को ये हादसा पता चला, गुस्साए ग्रामीणों ने सड़क जाम कर दिया। सड़क पर दोनों दिशाओं में गाड़ियाँ रुकी रहीं और यातायात पूरी तरह बाधित हो गया। इस जाम की वजह से लगभग आठ घंटे तक आवाजाही ठप्प रही।

मृतक बच्चे को रौंदे जाने के बाद ग्रामीणों का गुस्सा फ़ूट पड़ा। दुर्घटना स्थल पर मौजूद लोग कहते हैं कि यह रास्ता अक्सर मवेशियों लदे वाहनों के लिए उपयोग होता है, लेकिन तेज रफ्तार और नियमों की अनदेखी आम बात है। इस घटना के बाद ग्रामीणों ने जिस पिकअप वैन के ड्राइवर को दबोचने की कोशिश की, उसे पुलिस ने मौके से हिरासत में लिया। घटना की खबर फैलते ही तीसरी थाना प्रभारी, नयनपुर थाना प्रभारी समेत अन्य पुलिस अधिकारी मौके पर पहुँचे। फिर परिवार वालों और आक्रोशित ग्रामीणों ने मासूम का शव सड़क पर रखकर जाम लगा दिया ताकि प्रशासन गंभीर हो और न्याय की बात हो।

परिवार वालों की भी चीखों और रोने-धोने से पूरा माहौल भारी हो गया। माँ-बाप अपने बचपन की हँसी-खेल और गुड़-गुड़ की मुस्कान याद करते रहे, जबकि गाँव में मातम की चादर फैल गई। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और स्थानीय प्रशासन ने मामला शांतिपूर्वक सुलझाने का प्रयास किया। एसडीपीओ राजेंद्र प्रसाद ने मौके पर आकर आश्वासन दिया कि मामले की जांच होगी और दोषियों को सज़ा मिलेगी। लेकिन ग्रामीणों में यह चिंता बनी कि कितनी देर में न्याय मिलेगा और क्या ऐसे हादसे आगे नहीं होंगे।

सड़क सुरक्षा और प्रशासन की चुनौती

इस घटना ने एक बार फिर सड़क सुरक्षा और वाहनों की गति नियंत्रण जैसे विषयों को ताज़ा कर दिया। ग्रामीणों का कहना है कि मवेशियों लदे वाहनों की संख्या इस मार्ग पर दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है और उनके ड्राइवर अक्सर गति सीमा की अनदेखी करते हैं। बच्चों और बुज़ुर्गों के चलते गांव की सड़कें जीवन के लिए जोखिम बन चुकी हैं। लोग पूछ रहे हैं कि क्या सरकार या स्थानीय प्रशासन ने कभी इस मार्ग की नियमित निगरानी या सड़क की मरम्मत के बारे में सोचा है।

प्रशासन की चुनौती यह है कि दुर्घटनाओं के बाद सिर्फ़ आश्वासन देना ही पर्याप्त नहीं है। सड़क की गुणवत्ता, मार्ग की चौड़ाई, गति नियंत्रण के संकेत, यातायात नियंत्रण और पुलिस की त्वरित प्रत्युत्तर व्यवस्था सभी सुधार की मांगें हैं। इस पूरे घटना ने यह भी दिखाया कि जब न्याय की उम्मीद टूटती है, तो आक्रोश सामाजिक रूप से व्यापक हो जाता है। स्थानीय लोगों ने कहा कि यदि पहले सड़क की मरम्मत होती और वाहन चालक को नियंत्रण में लाया जाता, तो शायद यह दुर्घटना न होती।

यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि मासूम ज़िंदगियों के लिए सड़क कितनी संवेदनशील जगह बन चुकी है। सुरक्षा नियमों का पालन, वाहन चालकों की जिम्मेदारी और प्रशासन की तत्परता—इन तीनों के बिना ऐसी घटनाएँ बार-बार दोहराई जाती रहेंगी। दोषियों को सज़ा मिलने से न्याय की आग बुझेगी नहीं, लेकिन यह कम से कम यह सुनिश्चित करेगा कि अन्य लोग सतर्क हों। पुलिस, प्रशासन और समाज—तीनों को मिलकर यह जिम्मेदारी निभानी होगी कि सड़कें सुरक्षा के लिहाज से सुरक्षित हों।

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