भारतीय सेना ने ‘भैरव’ नामक लाइट कमांडो फोर्स का गठन शुरू कर दिया है। कुल 25 भैरव बटालियन तैनात की जाएंगी — इनमें से 5 बटालियन पहले से सक्रिय हैं और बाकी एक-एक कर अगले छह महीनों में परिचालनिक होंगी।
भैरव बटालियनों का उद्देश्य और भूमिका
भैरव इकाइयां पारंपरिक इन्फैंट्री और स्पेशल फोर्सेज के बीच क्षमता-खाई को भरने के लिए तैयार की गईं हैं। ये हल्की, फुर्तीली और घातक यूनिट्स हैं जिनका उपयोग सीमापार तेजी से अभियान, टोही (reconnaissance) और दुश्मन की आपूर्ति तथा संचार लाइनों में व्यवधान डालने के लिए किया जाएगा।
तैनाती का स्वरूप
पहले चरण में तीन यूनिटें नॉर्दर्न कमांड में शामिल की जा चुकी हैं — लेह (14 कॉर्प्स), श्रीनगर (15 कॉर्प्स) और नगरौटा (16 कॉर्प्स)। बाकी बटालियन पूर्वी और पश्चिमी सीमाओं के रेगिस्तानों और पहाड़ी क्षेत्रों में तैनात होंगी।
भैरव यूनिटों की संरचना
भैरव बटालियनों में विभिन्न ब्रांचों के कर्मी शामिल किए गए हैं — प्रत्येक इकाई में सूत्रों के अनुसार एयर डिफेंस से ~5, आर्टिलरी से ~4 और सिगनल से ~2 कर्मी शामिल होते हैं। एक भैरव बटालियन की ताकत लगभग 250 सैनिक मानी जा रही है।
घातक पलटन और उनकी भूमिका
घातक पलटन (strike platoons) की भूमिका भैरव से अलग बनी रहेगी। एक घातक पलटन में लगभग 20 सैनिक होते हैं और ये विशेष मिशनों के लिए संरक्षित रहेंगे, जबकि भैरव बटालियन बड़े पैमाने पर गतिशील सीमा अभियानों के लिए इस्तेमाल होंगी।
ड्रोन युद्ध में बढ़त: 380 ‘ASHNI’ पलटनें
सेना ने ड्रोन संचालन पर केंद्रित 380 ASHNI पलटनें भी बनाई हैं, जिनमें हर पलटन में लगभग 20 विशेष प्रशिक्षित सैनिक हैं। इन पलटनों में जासूसी, निगरानी और इलेक्ट्रॉनिक-स्पष्टता वाले ड्रोन शामिल हैं जो आधुनिक रणक्षेत्र में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।
रणनीतिक मायने और प्रभाव
भैरव और ASHNI का संयुक्त निर्माण भारतीय सेना की त्वरित-प्रतिक्रिया क्षमता, सीमापारी तैनाती और आधुनिक युद्धक्षेत्र में तकनीकी बढ़त को सुदृढ़ करेगा। इससे पारंपरिक बलों तथा विशेष बलों के बीच तालमेल बेहतर होगा और सीमा पर तेज़, लचीला एवं असरदार अभियान संभव होंगे।