‘थामा’ डायरेक्टर आदित्य सरपोतदार की हॉरर-कॉमेडी फिल्म है, जिसमें आयुष्मान खुराना, रश्मिका मंदाना, नवाजुद्दीन सिद्दीकी और परेश रावल मुख्य भूमिकाओं में हैं। 149 मिनट की यह फिल्म मैडॉक यूनिवर्स का हिस्सा होने के बावजूद दर्शकों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती।
फिल्म की कोशिश डर, रोमांस और मिथक को मिलाकर मनोरंजन देने की थी, लेकिन कहानी अधूरी और भटकी हुई लगती है। पहला आधा घंटा धीमा और दूसरा भाग असंगत महसूस होता है।
कहानी का सार और कमजोरियाँ
कहानी जंगल के बीच प्राचीन किंवदंती के “बेतालों” के इर्द-गिर्द घूमती है। नवाजुद्दीन सिद्दीकी का किरदार यक्षासन नियम तोड़ने की कोशिश करता है, जबकि आयुष्मान खुराना का आलोक और रश्मिका मंदाना की ताड़का का रिश्ता मजबूरी और भ्रम से भरा है।
जंगल के दृश्य लंबे और नीरस लगते हैं, रोमांच का अनुभव नहीं होता। जब दोनों शहर लौटते हैं, तो फिल्म कॉमेडी और पारिवारिक ड्रामे में उलझ जाती है। परेश रावल के संवाद हल्की मुस्कान लाते हैं, पर उनका ह्यूमर मजबूरन ठूंसा हुआ लगता है।
अभिनय का विश्लेषण
कास्ट की परफॉर्मेंस
आयुष्मान खुराना सामान्य इंसान की भूमिका में हैं, लेकिन स्क्रिप्ट उनका साथ नहीं देती। रश्मिका मंदाना ओवरड्रामैटिक और अस्थिर हैं। दोनों की कैमिस्ट्री कमजोर है।
नवाजुद्दीन सिद्दीकी दमदार अभिनेता होने के बावजूद अपने किरदार में सीमित हैं। परेश रावल कुछ संवादों में हल्की मुस्कान जरूर लाते हैं, लेकिन प्रभावशाली नहीं बन पाते।
डायरेक्शन और तकनीकी पक्ष
निर्देशन और विजुअल्स
आदित्य सरपोतदार का निर्देशन कमजोर साबित होता है। जंगल के दृश्य नकली और फीके लगते हैं। बैकग्राउंड म्यूजिक बार-बार “थामा थामा” के रिफ्रेन पर लौटता है, जिससे झुंझलाहट होती है।
एक्शन सीक्वेंस बेसुरे और बी-ग्रेड टोन वाले दिखाई देते हैं। विजुअल इफेक्ट्स और संपादन दोनों ही औसत दर्जे के हैं।
म्यूजिक और बैकग्राउंड स्कोर
संगीत के मोर्चे पर फिल्म साधारण है। “तुम मिले” गाना थोड़ा राहत देता है, लेकिन बाकी गाने फिल्म की गति रोकते हैं। बैकग्राउंड स्कोर ज्यादा शोर पैदा करता है और फिल्म के भाव को ठीक से सपोर्ट नहीं करता।
फिल्म की कमजोर कड़ी और अच्छाई
खामियाँ
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कहानी अधूरी और भटकी हुई
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अभिनय असंतुलित और ओवरड्रामैटिक
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विजुअल इफेक्ट्स नकली और कमजोर
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म्यूजिक और बैकग्राउंड स्कोर परेशान करने वाला
अच्छाई
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मैडॉक यूनिवर्स के संकेत रोचक हैं
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कुछ संवाद हल्की मुस्कान लाते हैं
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छोटे-छोटे कॉमिक पल मौजूद हैं
फाइनल वर्डिक्ट
‘थामा’ दिवाली के मौके पर रिलीज़ हुई, लेकिन दर्शकों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती। न डर, न रोमांच, न मजा, बस अधूरापन और ऊब। यदि आप हॉरर यूनिवर्स का फैन्स हैं, तो इसे एक बार देखने के बाद ही निर्णय लें।