लाम्बाहरिसिंह (राजस्थान):
जैसे-जैसे दीपावली का पर्व नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे पारंपरिक हस्तशिल्प और कुम्हारी कला एक बार फिर अपनी चमक बिखेरने लगी है। लाम्बाहरिसिंह नगर पालिका क्षेत्र में प्रजापति समाज के कारीगर इन दिनों मिट्टी के दीपक, मटकी, तवा और अन्य बर्तन तैयार करने में जुटे हुए हैं।
हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी कुम्हारों ने हस्तनिर्मित दीपकों और मिट्टी के बर्तनों की बिक्री हेतु जोर-शोर से तैयारियां शुरू कर दी हैं।
प्रजापति समाज की पहचान रही कुम्हारी कला दीपावली के दौरान अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक महत्ता के कारण विशेष रूप से जीवंत हो जाती है। मिट्टी से बने दीपक न केवल पर्यावरण के अनुकूल होते हैं, बल्कि धार्मिक दृष्टिकोण से भी शुभ माने जाते हैं।
कारीगर कान्हा प्रजापत ने बताया कि इस बार भी समाज के सभी कारीगरों ने दीयों, मटकियों, कुल्हड़ों और तवों की बड़ी मात्रा में तैयारी कर रखी है, जिसे दीपावली से पहले बाजार में उतारा जाएगा।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
हिंदू धर्म में दीपावली के दिन मिट्टी के दीपक जलाना अत्यंत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इससे घर में लक्ष्मी का वास होता है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
इस कारण लोग आज भी मिट्टी के दीयों को प्लास्टिक या कृत्रिम रोशनी की तुलना में अधिक प्राथमिकता देते हैं। लोकल आर्ट और परंपरा को बढ़ावा देने का यह एक बेहतरीन अवसर बन चुका है।
स्थानीय बाजारों में लोकल को बढ़ावा
लाम्बाहरिसिंह क्षेत्र में इस वर्ष स्थानीय बाजारों में ‘वोकल फॉर लोकल’ के तहत लोगों को स्थानीय कारीगरों द्वारा बनाए गए दीपक और बर्तन खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इससे एक ओर जहां परंपरा का संरक्षण हो रहा है, वहीं दूसरी ओर स्थानीय रोजगार को भी मजबूती मिल रही है।
कारीगरों के अनुसार, वे न केवल परंपरागत डिज़ाइनों पर काम कर रहे हैं, बल्कि नई डिज़ाइनों और आकारों के साथ भी प्रयोग कर रहे हैं ताकि युवा वर्ग की पसंद को भी ध्यान में रखा जा सके।
बाजार में बढ़ रही मांग
दीपावली से पहले ही इन मिट्टी के उत्पादों की मांग स्थानीय बाजारों, हाट-बाजारों, स्कूलों और धार्मिक संस्थानों में बढ़ रही है। व्यापारी अग्रिम ऑर्डर भी दे रहे हैं।
प्रजापति समाज के कारीगरों का कहना है कि इस बार उन्हें पिछले वर्षों की तुलना में अधिक उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिल रही है।
सरकारी सहयोग और योजनाएं भी जरूरी
हालांकि कारीगरों को उम्मीद है कि सरकार की ओर से भी कुम्हारी कला को प्रोत्साहित करने के लिए प्रशिक्षण, ऋण सहायता और विपणन सुविधाएं मिलें, ताकि यह पारंपरिक शिल्प और भी आगे बढ़ सके।
दीपावली पर मिट्टी के दीपकों और बर्तनों का उपयोग न केवल एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि यह स्थानीय कारीगरों के जीवन और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक अहम कदम भी है। लाम्बाहरिसिंह के प्रजापति समाज द्वारा की जा रही यह तैयारी हमारी सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखने का एक बेहतरीन उदाहरण है।
संवाददाता मुकेश कुमार माली
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