अफगान विदेश मंत्री की नई दिल्ली यात्रा और रूस का भारत को कच्चे तेल पर बड़ा डिस्काउंट

अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताक़ी नई दिल्ली पहुंच चुके हैं। यह उनकी तालिबानी शासन के बाद पहली ऐसी उच्च‑स्तरीय यात्रा है, जिसे भारत और अफगानिस्तान के बीच कूटनीतिक संवाद को नई दिशा देने वाला कदम माना जा रहा है। 

भारत ने इसके पहले इस यात्रा की पुष्टि की है और कहा है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने उन्हें भारत आने की अस्थायी अनुमति दी है।  मुत्ताक़ी की यात्रा 9 से 16 अक्टूबर के बीच निर्धारित की गई है।

इस यात्रा का उद्देश्य और महत्व

मुत्ताक़ी के इस दौरे में राजनीतिक, आर्थिक, वाणिज्यिक और मानवीय सहयोग के कई मुद्दों पर चर्चा होने की संभावना है। भारत और अफगानिस्तान के बीच अब तक अनौपचारिक रूप से चली आ रही सहायता और संवाद इस यात्रा से औपचारिक मान्यता पा सकते हैं। 

इस कदम से यह संकेत मिलता है कि भारत तालिबानी शासन के साथ संवाद को बढ़ावा देना चाहता है — न कि तत्काल मान्यता देना, लेकिन एक रियल पॉलिसी द्वारा व्यवहारिक सहयोग की दिशा में कदम उठाना।

रूस का भारत को कच्चे तेल पर बड़ा डिस्काउंट: दबाव के बीच रणनीति

उसी समय, अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा बाजार में एक अहम खबर यह है कि रूस ने अमेरिका के दबाव को नजरअंदाज करते हुए भारत को कच्चे तेल पर विशेष छूट दी है

रूस द्वारा भारत को दी गई इस छूट का स्तर लगभग 5% तक बताया जा रहा है, हालाँकि यह डिस्काउंट सौदे और समय के साथ बदलता रहता है। यह कदम एक तरह से रूस की यह घोषणा है कि वह ऊर्जा सहयोग को राजनीतिक दबाव से जोड़ने नहीं देगा। 

डिस्काउंट की दर और बाजार प्रभाव

  • रूस का Urals क्रूड वर्तमान में ब्रेंट क्रूड की तुलना में $3–4 प्रति बैरल तक सस्ता बेचा जा रहा है।

  • इससे पहले यह छूट जुलाई महीने में लगभग $1 प्रति बैरल के आसपास थी। 

  • इस छूट के कारण भारत ने रूस से तेल खरीद जारी रखी है, भले ही अमेरिका ने इस पर कड़ी निगरानी रखी हो।

    कैसे हैं ये दोनों घटनाएँ जुड़ी?

    1. ऊर्जा और कूटनीति की समेकन नीति
      भारत जिस तरह से विदेश नीति क्षेत्र में सक्रिय है, उसी तरह ऊर्जा रणनीति भी उसकी राष्ट्रहित प्राथमिकताओं का हिस्सा बनी है। रूस का डिस्काउंट और अफगानिस्तान के साथ संवाद — ये दोनों कदम भारत की रणनीति में आत्मनिर्भरता और साझेदारी को प्राथमिकता देते हैं।

    2. दबाव और जवाबी चाल
      अमेरिका की ओर से रूस–भारत ऊर्जा सहयोग पर दबाव लगातार बना है। लेकिन रूस ने भारत को दी गई छूट से स्पष्ट संदेश दिया है कि वह अपने रणनीतिक साझेदारों के साथ सहयोग जारी रखना चाहता है। 

    3. क्षेत्रीय संतुलन
      अफगानिस्तान की नई साझेदारी और ऊर्जा सहयोग की स्थापना दक्षिण एशियाई भू-रणनीतिक संतुलन को प्रभावित कर सकती है। भारत इन दोनों मोर्चों पर सक्रिय कदम उठा रहा है ताकि दक्षिण एशिया और मध्य एशिया में अपनी भूमिका मजबूत करे।

अफगान विदेश मंत्री की नई दिल्ली यात्रा और रूस द्वारा भारत को दिया गया डिस्काउंट, दोनों ही घटनाएँ भारत की बहुआयामी रणनीति को दर्शाती हैं — जिसमें ऊर्जा सुरक्षा, कूटनीति, और क्षेत्रीय स्थिरता शामिल हैं।

भविष्य में देखना होगा कि भारत इन अवसरों का कितना उपयोग करता है — और किस तरह से वह अपनी विदेश नीति और ऊर्जा नीति को संतुलित रखकर बड़ी वैश्विक चुनौतियों का सामना करता है।

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