स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही और फर्जी दवा कारोबारियों की करतूत ने मरीजों की जान से खिलवाड़ का बड़ा मामला उजागर किया है। जिन टैबलेट्स के सरकारी जांच में सैंपल फेल हो चुके थे, वही दवाइयां पहले ही हजारों की संख्या में बाज़ार में बिक चुकी थीं। यह खुलासा प्रदेश में दवा सप्लाई और क्वालिटी कंट्रोल सिस्टम पर गंभीर सवाल खड़ा करता है।
सैंपल फेल, लेकिन बिक्री जारी
जांच रिपोर्ट में पाया गया कि कई टैबलेट्स में ज़रूरी साल्ट तक गायब थे। दवा बनाने वाली कंपनियों ने गुणवत्ता मानकों की खुलेआम धज्जियां उड़ाईं। लेकिन सवाल यह है कि जब सैंपल जांच में फेल हो गए थे, तब तक हज़ारों गोलियां कैसे बाजार में पहुंच गईं और मरीजों तक चली गईं?
लोगों की जान पर खतरा
इन नकली या घटिया दवाइयों के सेवन से मरीजों की हालत बिगड़ने और जान तक जाने का खतरा है। विशेषज्ञों का कहना है कि दवाओं में साल्ट गायब होने का मतलब है कि बीमारी का इलाज ही नहीं होगा, बल्कि मरीज की स्थिति और भी खराब हो सकती है।
जिम्मेदार कौन?
यह मामला सिर्फ दवा कंपनियों तक सीमित नहीं है। नियामक एजेंसियों की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। अगर दवा नियंत्रण विभाग समय पर कार्रवाई करता तो शायद यह घोटाला मरीजों तक नहीं पहुंच पाता।
सख्त कार्रवाई की मांग
राजस्थान में दवा घोटाले के बाद जनता और सामाजिक संगठनों ने दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की है। यह ज़रूरी है कि नकली दवा बनाने और बेचने वालों के खिलाफ न केवल कानूनी कार्रवाई हो, बल्कि दोषी अधिकारियों को भी जिम्मेदार ठहराया जाए।
जनता के लिए चेतावनी
यह घटना एक चेतावनी है कि मरीजों को दवा खरीदते समय सावधानी बरतनी चाहिए। भरोसेमंद मेडिकल स्टोर से ही दवाएं खरीदें और शक होने पर तुरंत डॉक्टर से परामर्श लें।