बिहार : चुनाव समय-सारणी और प्रक्रिया
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आगामी चुनाव अक्टूबर–नवंबर 2025 में आयोजित किए जाने की संभावना है, इस दौरान 243 विधानसभा सीटों के लिए मतदान और मतगणना की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी।
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चुनाव आयोग ने तीन चरणों में मतदान कराए जाने की संभावना जताई है, ताकि त्योहारों—जैसे दिवाली तथा छठ—और मौसम की स्थिति को ध्यान में रखा जा सके।
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इस चुनाव में मतदाता सूची का विशेष सत्यापन चल रहा है, जिसमें आधार को 12वां मान्य पहचान पत्र के रूप में शामिल किया गया है और लगभग 5% मतदाताओं ने ऐसे दस्तावेज़ जमा किए जिनसे उनका पंजीकरण संदिग्ध हो सकता है।
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अवैध वोटर पहचान की जांच भी तेज हो गई है—अचानक रिपोर्टों में नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार जैसे स्थानों से फर्जी दस्तावेज़ों के जरिए पंजीकरण करने वालों की पहचान हुई है, जिससे मतदाता सूची की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं।
दलों की सक्रियताएँ और गठबंधन
बीजेपी और NDA की तैयारी
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बीजेपी ने बिहार से बाहर रह रहे दो करोड़ ‘बिहारियों तक विशेष संपर्क अभियान शुरू किया है, ताकि घर-घर जाकर चुनावी संदेश पहुंचे।
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सीट साझा रणनीति को अंतिम रूप देने का काम तेजी से हो रहा है, जिसमें सहयोगी दलों की हिस्सेदारी तय की जा रही है।
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) बड़ी भूमिका निभा रहा है; संघ प्रमुख की नेतृत्व में जातिगत राजनीति का खेल बदल सकता है और बीजेपी इसे अपने पक्ष में पलटने की कोशिश कर रही है।
महागठबंधन (MGB) की चुनौतियाँ
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महागठबंधन में RJD, कांग्रेस और अन्य छोटे दल शामिल हैं, लेकिन अंदरूनी खींचातानी, सीट बंटवारे और नेतृत्व की संभावनाओं पर मतभेद देखने को मिल रहे हैं।
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तेजस्वी यादव की रणनीति और उनके नेतृत्व के इर्द-गिर्द दिख रहे संकट इस गठबंधन को कमजोर कर सकते हैं।
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साथ में नए उभरते दल जैसे जैसे जन-सुराज पार्टी (प्रशांत किशोर) और जय राम मांझी की HAM भी चुनावी समीकरण को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं—HAM ने हाल ही में दिल्ली में राष्ट्रीय सम्मेलन कर 10 प्रस्ताव पारित किए हैं और युवाओं व दलितों को आकर्षित करने की योजना बना रही है।
AAP का दांव
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आम आदमी पार्टी ने 243ों सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा की है, यानी किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगी।
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पार्टी ने पहले ही बिहार में कई क्षेत्रों में तीन चरणों में संपर्क अभियान चलाया है, जिससे उसकी सक्रियता और घोषित मंशा स्पष्ट होती है।
चिराग पासवान – LJP रणनीति
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लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान ने भी चुनावी मैदान में कदम रखा है। उन्होंने कहा है कि उनका गठबंधन 225 से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य रखता है—यह स्पष्ट रूप से एक बड़ा इरादा दर्शाता है।
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उनकी मंच स्थिरता और जोश, NDA और MGB दोनों के लिए चुनौती खड़ी कर सकती है।
क्षेत्रीय मुद्दे और जनभावनाएँ
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उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा पर दो वोटर ID का विवाद राजनीतिक हलकों में उछल पड़ा है; चुनाव आयोग ने उन्हें नोटिस भेजा है और वह जवाब देने को तैयार हैं। यह मामला चुनाव की निष्पक्षता पर प्रश्न उठा रहा है।
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मतदाता सूची पर विवाद (जैसे कि 65 लाख नाम हटाए गए थे लेकिन कुछ को वापस जोड़ने की संभावना) भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के प्रति जनता और दलों में चिंता पैदा कर रहा है।
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लोकाचार और पारदर्शिता के मुद्दे बड़े चुनावी संदेशों में बदलने की क्षमता रखते हैं।
चुनाव और विकास का मिश्रण
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चुनावों के ठीक पहले केंद्र सरकार ने बिहार में ₹7,616 करोड़ के सड़क और रेल परियोजनाएं मंजूर की हैं, जिसका उद्देश्य राजनीतिक लाभ के साथ साथ आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देना भी है।
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राज्य का GSDP 8.64% की दर से बढ़कर लगातार विकास की ओर बढ़ा है, जो सरकार के विकास-पर जोर डालने की रणनीति को भी मजबूत करता है।
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इसके अलावा, बक्सर-भागलपुर हाई-स्पीड कॉरिडोर जैसे परियोजनाएं, जिसने न केवल यात्रा समय में 1.5 घंटे तक की बचत की है, बल्कि लाखों मानव-दिवस रोजगार भी उत्पन्न किया है, चुनावी मंच पर विकासवाद की कहानी को मजबूती देते हैं।
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सामाजिक कल्याण की पहलें जैसे आंगनबाड़ी वर्कर्स का मानदेय बढ़ाना, कन्या विवाह मंडप के लिए फंड, नए थानों में CCTV, और एक नई फेलोशिप योजना भी सरकार की जन-हितकारी छवि को पुष्ट करती हैं।
चुनावी तनाव और सामाजिक संवाद
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उत्तराधिकार और धार्मिक प्रतीकों का चुनावी उपयोग—जैसे तेजस्वी यादव द्वारा गया में पिंड दान, और पीएम का उस पर संभावित दौरा—ने सांस्कृतिक राजनीति को भी उभरने दिया है। यह न केवल राजनीतिक संदेश है, बल्कि भावनात्मक जुड़ाव का भी प्रभाव दर्शाता है।
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पूरे चुनावी माहौल में यह सांस्कृतिक-सामाजिक विकल्प भी मतदाताओं को प्रभावित करने वाला कारक बन सकता है।